यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 11 सितंबर 2013

विचित्र कथ्य-भावों की एक ग़ज़ल 'आईना' पर ..एक रुबाई एवं ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त....



--- कुंवर बेचैन की एक उल-जुलूल ग़ज़ल 'आईना' पर ..एक रुबाई एवं ग़ज़ल ...

          रुबाई...


किसने कहा कि भाग्य-विधाता है आईना |
चांदी की पीठ हो तभी बनता है आईना |
है आपकी औकात क्या, वह बोल जाता है -
क्या इसलिए न आपको भाता है आईना | 




     आईना –ग़ज़ल...

किसने कहा कि भाग्य-विधाता है आईना |
चांदी की पीठ हो तभी बनता है आईना |

ईमान-धर्म है जहां  मिलाते वही हैं हाथ,
ईमां-धरम का अर्थ सिखाता है आईना |

खाकर के चोट आईना टुकड़ों में बंट गया,
फिर भी तो अपना धर्म निभाता है आईना |

है आपकी औकात क्या, वह बोल जाता है -
क्या इसलिए न आपको भाता है आईना |  

शिकवा गिला क्या आईना है बेजुबान श्याम’
खुद आपका ही अक्स दिखाता है आईना |

8 टिप्‍पणियां:

  1. रुबाई और ग़ज़ल दोनों बहुत बढ़िया है

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बृहस्पतिवार (12-09-2013) को चर्चा - 1366मे "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    आप सबको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. धन्यवाद निशाजी ....
      हम आईना समाज का कहलाते हैं ,
      क्या कहें सच सामने ले आते हैं|
      लोग कहते हैं कवि है साहित्यकार हैं-
      हम तो बस दिल की बात दोहराते हैं|

      हटाएं
  4. खाकर के चोट आईना टुकड़ों में बंट गया,
    फिर भी तो अपना धर्म निभाता है आईना |
    शिकवा गिला क्या आईना है बेजुबान श्याम’
    खुद आपका ही अक्स दिखाता है आईना |

    बहुत सुन्दर गजल भाव सम्प्रेषण और अर्थ सम्प्रेषण में भी उज्जवल।

    बधाई डॉ श्याम गुप्त जी श्याम।

    मीरा हो या राधा बने रहो श्याम ,

    रोज़ सुबहा शाम।

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद शर्माजी .....सादर पेश है---

    राधाजी! मैं तो बिनती करूँ ।
    दर्शन दे कर श्याम मिलादो,पैर तिहारे पडूँ ।
    लाख चौरासी योनि में भटका , कैसे धीर धरूँ ।
    जन्म मिला नर, प्रभु वंदन को,सौ सौ जतन करूँ ।
    राधे-गोविन्द, राधे-गोविन्द, नित नित ध्यान धरूँ ।
    जनम जनम के बन्ध कटें जब, मोहन दर्श करूँ ।
    श्याम, श्याम के दर्शन हित नित राधा पद सुमिरूँ ।
    युगल रूप के दर्शन पाऊँ, भव -सागर उतरूँ ॥

    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...