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बुधवार, 11 सितंबर 2013

"अच्छी नहीं लगतीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। 

तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। 
मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का,  
चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।। 

गुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
वतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। 
जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था-
सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
    तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
    मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का,
    चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।।

    बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

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