यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

"ग़ज़ल-नाम तुम्हारा, काम हमारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


काम तो हमारे हैं, नाम बस तुम्हारा है
पाँव तो हमारे हैं, रास्ता तुम्हारा है


लिख रहे हैं प्यार की इबारत को
बोल तो हमारे हैं, कण्ठ बस तुम्हारा है


नदिया में लहरों से जूझ रहे हैं
दूर ही किनारा है, आपका सहारा है


अपने दिल में झाँककर देखिए जरा
आइना तुम्हारा है, अक्स बस हमारा है


दिख रहे हैं दोबदन एक  सुमन के
प्राण तो तुम्हारा है, 
"रूप" बस हमारा है

4 टिप्‍पणियां:

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...