गज़ल
ऐ हसीं ! ता ज़िंदगी
ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |
ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |
जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |
नगमे तुम्हारे प्यार के और सज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |
चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |
या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ, ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |
पीता रहूँ, ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |
है इब्तिदा, रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (05-12-2013) को "जीवन के रंग" चर्चा -1452
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी ...
हटाएंबढ़िया गज़ल-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय डाक्टर साहब-
धन्यवाद रविकर....
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