यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नव वर्ष ...डा श्याम गुप्त के कवित्त ....


नव वर्ष---

. देव घनाक्षरी ( ३३ वर्ण , अंत में नगण )
पहली जनवरी को मित्र हाथ मिलाके बोले ,
वेरी वेरी हेप्पी हो ये न्यू ईअर, मित्रवर |
हम बोले शीत की इस बेदर्द ऋतु में मित्र ,
कैसा नववर्ष तन काँपे थर थर थर |
ठिठुरें खेत बाग़ दिखे कोहरे में कुछ नहीं ,
हाथ पैर हुए, छुहारा सम सिकुड़ कर |
सब तो नादान हैं पर आप क्यों हैं भूल रहे,
अंगरेजी लीक पीट रहे नच नच कर ||

. मनहरण कवित्त (१६-१५, ३१ वर्ण , अंत गुरु-गुरु.)-मगण |

अपना तो नव वर्ष चैत्र में होता प्रारम्भ ,
खेत बाग़ वन जब हरियाली छाती है |
सरसों चना गेहूं सुगंध फैले चहुँ ओर ,
हरी पीली साड़ी ओड़े भूमि इठलाती है |
घर घर उमंग में झूमें जन-जन मित्र ,
नव अन्न की फसल कट घर आती है |
वही है हमारा प्यारा भारतीय नववर्ष ,
ऋतु भी सुहानी तन-मन हुलसाती है ||

मनहरण --
सकपकाए मित्र, फिर औचक ही यूं बोले,
भाई आजकल सभी इसी को मनाते हैं |
आप भला छानते क्यों अपनी अलग भंग,
अच्छे खासे क्रम में भी टांग यूं अडाते हैं |
हम बोले आपने जो बोम्बे कराया मुम्बई,
और बंगलूरू, बेंगलोर को बुलाते हैं |
कैसा अपराध किया हिन्दी नववर्ष ने ही ,
आप कभी इसको नज़र में न लाते हैं |


3 टिप्‍पणियां:

  1. नववर्ष 2014 सभी के लिये मंगलमय हो ,सुखकारी हो , आल्हादकारी हो

    जवाब देंहटाएं
  2. हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
    हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||

    शुभकामनायें आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी को धन्यवाद सहितआंग्ल- नव-वर्ष की शुभकामनाएं ....

    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरी नवीन प्रकाशित पुस्तक---दिल की बात, गज़ल संग्रह ....डॉ. श्याम गुप्त

                                 दिल की बात , गज़ल संग्रह   का   आत्मकथ्य –                            काव्य या साहित्य किसी विशेष , काल...