फूल हो गये ज़ुदा, शूल मीत बन गये।
भाव हो गये ख़ुदा, बोल गीत बन गये।।
काफ़िला बना नहीं, पथ कभी मिला नहीं,
वर्तमान थे कभी, अब अतीत बन गये।
देह थी नवल-नवल, पंक में खिला कमल,
तोतली ज़ुबान की, बातचीत बन गये।
सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में,
मज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये।
आइना कमाल है, “रूप” इन्द्रज़ाल है,
धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये।
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बुधवार, 11 दिसंबर 2013
"शूल मीत बन गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल .......कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे ..की धुन पर ....
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
काफ़िला बना नहीं, पथ कभी मिला नहीं,
जवाब देंहटाएंवर्तमान थे कभी, अब अतीत बन गये।
सुन्दर भाव गीत। सांगीतिक माधुर्य लिए छंद बद्ध बंदिश गुनगुनाहट लिए।