सुन सुन कर नेताओं के
कोमल कर्कश वाणी ,
क्या समझे और क्या न समझे
हमें होती है हैरानी |
सोचते सोचते आँख लग गई
देखा एक सपना अनोखा ,
विष्णुलोक पहुँच गया मैं
लक्ष्मी नायायण का दर्शन किया |
चरणस्पर्श कर माता लक्ष्मी का
और भवसागर के पालक का ,
कहा ,"प्रभु !प्रोमोदित हो तुम गोलोक में
देखो ज़रा हाल भव-संसार का |
स्वर्ग तुल्य भारत भूमि में
हो गया है मानवता का नाश ,
मानव का कलेवर है सबका
आचार विचार से है राक्षस |
भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं
पैर से सर तक शासक वर्ग
महंगाई और शोषण का शिकार
हो रहे हैं निम्न और माध्यम वर्ग |
अत्याचार ,व्यभिचार ,बलात्कार
हो गया है एक मामूली बात ,
गाली गलौज तो जैसे फुल बरसता है
कत्ले आम होती है दिन रात |
भाई, भाई का खून का प्याषा
घर में ,बाहर में फैला है निराशा
एटम बम्ब के त्रास से भयभीत
फट जाय तो बचने की नहीं आशा |
सत्य का हनन ,असत्य का विजय
यही है कलियुग का प्रिय नारा
बाहू बालियों का राज है अब
जनता हो गई गौ बेचारा |
त्याग दिया क्या धरती पर आना
भूल गए क्या अपना वचन ?
धर्म की रक्षा के लिए धरती पर
जनम लेकर करना है दुष्टों का दमन |"
प्रभु बोले ," व्याकुल क्यों वत्स
सुनो मेरी बात पूर्ण ध्यान से
कलियुग के अन्तिम चरण में
कोई नहीं बंधे धर्म -कानून से |
दुष्कर्मों का घड़ा जब भर जायेगा
मारेंगे, मरेंगे सब चींटी जैसे
होगा विनाश समूल पापिओं का
द्वापर में मरे यदुकुल जैसे |"
निवेदन किया मैंने प्रभु से
एक बार फिर विनम्र होकर
"मानवता की करो रक्षा
धर्म को बचाओ अवतार लेकर |"
प्रभु बोले ,"आया नहीं अवतार का समय
नहीं जा सकता अभी धरती पर
तुम्हे देता हूँ एक अमोघ शक्ति
जाओ राज करो धरती पर |
तुम जो चाहोगे वही होगा
तुम जो कहोगे ,लोग वही करेंगे
कोई नहीं होगा जग में ऐसा
जो तुम्हारा विरोध कर पायेंगे |
दुष्टों को दण्डित करो और
धर्म राज्य का स्थापन करो
भ्रष्टाचारी ,बलात्कारी को दण्डित करो
शोषित और नारी को भय मुक्त करो |
तुम्हे देता हूँ वरदान वत्स
होगे तुम सफल इस काम में
सु-शासन और सुविचार का
प्रचार करो जाकर जग में |"
.................. क्रमश:-भाग २
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
कोमल कर्कश वाणी ,
क्या समझे और क्या न समझे
हमें होती है हैरानी |
सोचते सोचते आँख लग गई
देखा एक सपना अनोखा ,
विष्णुलोक पहुँच गया मैं
लक्ष्मी नायायण का दर्शन किया |
चरणस्पर्श कर माता लक्ष्मी का
और भवसागर के पालक का ,
कहा ,"प्रभु !प्रोमोदित हो तुम गोलोक में
देखो ज़रा हाल भव-संसार का |
स्वर्ग तुल्य भारत भूमि में
हो गया है मानवता का नाश ,
मानव का कलेवर है सबका
आचार विचार से है राक्षस |
भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं
पैर से सर तक शासक वर्ग
महंगाई और शोषण का शिकार
हो रहे हैं निम्न और माध्यम वर्ग |
अत्याचार ,व्यभिचार ,बलात्कार
हो गया है एक मामूली बात ,
गाली गलौज तो जैसे फुल बरसता है
कत्ले आम होती है दिन रात |
भाई, भाई का खून का प्याषा
घर में ,बाहर में फैला है निराशा
एटम बम्ब के त्रास से भयभीत
फट जाय तो बचने की नहीं आशा |
सत्य का हनन ,असत्य का विजय
यही है कलियुग का प्रिय नारा
बाहू बालियों का राज है अब
जनता हो गई गौ बेचारा |
त्याग दिया क्या धरती पर आना
भूल गए क्या अपना वचन ?
धर्म की रक्षा के लिए धरती पर
जनम लेकर करना है दुष्टों का दमन |"
प्रभु बोले ," व्याकुल क्यों वत्स
सुनो मेरी बात पूर्ण ध्यान से
कलियुग के अन्तिम चरण में
कोई नहीं बंधे धर्म -कानून से |
दुष्कर्मों का घड़ा जब भर जायेगा
मारेंगे, मरेंगे सब चींटी जैसे
होगा विनाश समूल पापिओं का
द्वापर में मरे यदुकुल जैसे |"
निवेदन किया मैंने प्रभु से
एक बार फिर विनम्र होकर
"मानवता की करो रक्षा
धर्म को बचाओ अवतार लेकर |"
प्रभु बोले ,"आया नहीं अवतार का समय
नहीं जा सकता अभी धरती पर
तुम्हे देता हूँ एक अमोघ शक्ति
जाओ राज करो धरती पर |
तुम जो चाहोगे वही होगा
तुम जो कहोगे ,लोग वही करेंगे
कोई नहीं होगा जग में ऐसा
जो तुम्हारा विरोध कर पायेंगे |
दुष्टों को दण्डित करो और
धर्म राज्य का स्थापन करो
भ्रष्टाचारी ,बलात्कारी को दण्डित करो
शोषित और नारी को भय मुक्त करो |
तुम्हे देता हूँ वरदान वत्स
होगे तुम सफल इस काम में
सु-शासन और सुविचार का
प्रचार करो जाकर जग में |"
.................. क्रमश:-भाग २
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
आभार मयंक जी !
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