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मंगलवार, 4 नवंबर 2014

ग़ज़ल....अंदाज़े-वयां ज़िंदगी का.... डा श्याम गुप्त ...



           अंदाज़े-वयां ज़िंदगी का....


जरूरी नहीं ज़िंदगी को घुट-घुट के जिया जाए |
चलो आज ज़िंदगी का अंदाज़े-वयां लिया जाए |

खुशी पाते हैं जो अपनी शर्तों पे जिया करते हैं ..
शर्त  यही   कि  सदा परमार्थ  हित  जिया जाए ..|

यूं तो पीने के कितने बहाने  हैं  ज़माने में,
लुत्फ़ है जब जाम से जाम टकरा के पिया जाए |

मरते हैं हज़ारों लोग दुनिया में यूं तो लेकिन,
मौत वही यारो जब देश पे कुर्वां  हुआ जाए |

जन्म लेते हैं, जीते हैं प्रतिदिन जाने कितने,
जीना वही जब राष्ट्र का सिर गर्वोन्नत किया जाए |

लिखी जाती हैं कितनी किताबें, कविता-कहानियां,
साहित्य वही  कुछ सामाजिक सरोकार दिया जाए |

ग़ज़ल कह तो रहा है हर खासो-आम यहाँ, लेकिन 
ग़ज़ल वही  जब अंदाज़े-वयां श्याम का जिया जाए |

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल...

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  2. धन्यवाद लेखिका जी, कैलाश जी,भारती, प्रतिभा, रविकर एवं ऋषभ ....

    जवाब देंहटाएं

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