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बुधवार, 28 मई 2014

कितना अच्छा होगा जब....नव गीत ----डा श्याम गुप्त .....

कितना अच्छा होगा जब,
बिजली पानी न आयेगा |

                  ऐसी कूलर नहीं चलेंगे ,
                   पंखा नाच नचाएगा ||

छत की शीतल मंद पवन में,
सोने का आनंद मिलेगा |
जंगल-झाडे के ही बहाने,
 प्रातः सैर को  वक्त मिलेगा |

नदी कुआं और ताल नहर फिर,
जल क्रीडा का सेतु बनेंगे |
शाम-सुबह छत पर, क्रीडाओं-
चर्चाओं के दौर चलेंगे |

                   नहीं चलेंगे फ्रिज टीवी ,
                    डिश-केबुल न आयेगा ||

मिलना जुलना फिर से होगा,
नाते-रिश्तेदारों में |
उठाना बैठना घूमना होगा,
पास पडौसी यारों में |

घड़े सुराही के ठन्डे जल-
की सौंधी सी गंध मिलेगी |
खिरनी फालसा शरवत कांजी ,
लस्सी औ ठंडाई घुटेगी |

                   घर-कमरों में बैठे रहना,
                   शाम समय न भाएगा ||

भोर में मंदिर के घंटों की,
ध्वनि  का सुख आनंद मिलेगा |
चौपालों पर ज्ञान वार्ता,
छंदों का संसार सजेगा |

धन्यवाद है शासन का,
इस अकर्मण्यता का वंदन है
धन्य धन्य हम भारत वासी ,
साधुवाद है अभिनन्दन है |

                      लगता है अब तो यारो,
                      सतयुग जल्दी आजायेगा ||

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (29-05-2014) को चर्चा-1627 पर भी है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर , वह सब नहीं आ पायेगा और न ही वह सुकून जो पहले मिलता था कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। ……। रचना श्यामजी

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद महेंद्र जी...---- ख्यालों में ...क्या हर्ज़ है ..

    जवाब देंहटाएं
  4. कविता में व्यंग अच्छा है।

    जवाब देंहटाएं

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