सच्चाई में बल होता है,
झूठ पकड़ में है आ जाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
समझदार को मीत बनाओ,
नादानों को मुँह न लगाओ।
बैरी दानिशमन्द भला है,
राज़ न अपना उसे बताओ।
आसमान पर उड़नेवाला,
औंधे मुँह धरती पर आता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
उससे ही सम्बन्ध बढ़ाओ,
प्रीत-रीत को जो पहचाने।
गिले भुलाकर गले लगाओ,
धर्म मित्रता का जो जाने।
मन के सागर में पलता है,
वफा-जफा का रिश्ता-नाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
शक्ल सलोनी, चाल घिनौनी,
मुख में राम, बगल में चाकू।
धर्म-गुरू का रूप बनाए,
लूट रहे जनता को डाकू।
मूषक का मन भरमाने को,
हर बिल्ला नाखून छिपाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
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गुरुवार, 1 मई 2014
"समझदार को मीत बनाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंनीति के सुन्दर निर्देश, जिन्हें अपना कर जीवन को सुखद बनाना संभव है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना |तस्वीर तो बहुत ही अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंनाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
जवाब देंहटाएंवो जीवनभर है पछताता .... वाह !!!एक से बढ़कर एक सुक्तिआं .... एक अनुरोध है अगर रचनाओं के साथ छंद की विधा भी लिख दी जाती तो समझने में बड़ी सुविधा होती .. ये मेरा व्यक्तिगत अनुरोध भर है ..
waah..sidhi saral bhasha men sshakt lekhan ka ek aur pramaan..abhar..
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