यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 17 मई 2014

"पंक में खिला कमल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



अंक है धवल-धवल।
पंक में खिला कमल।।

हाय-हाय हो रही,
गली-गली में शोर है,
रात ढल गई मगर,
तम से भरी भोर है,
बादलों में घिर गया,
भास्कर अमल-धवल।
अंक है धवल-धवल।
पंक में खिला कमल।।

पर्वतों की चोटियाँ,
बर्फ से गयीं निखर,
सर्दियों के बाद भी,
शीत की चली लहर,
चीड़-देवदार आज,
गीत गा रहे नवल।
अंक है धवल-धवल।
पंक में खिला कमल।।

चाँदनी लिए हुए,
चाँद भी डरा-डरा,
पादपों ने खो दिया
रूप निज हरा-भरा,
पश्चिमी लिबास में,
रूप खो गया सरल।
अंक है धवल-धवल।
पंक में खिला कमल।।

3 टिप्‍पणियां:

फ़ॉलोअर

दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') --

 दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- चलो गुरू के द्वार पर, गुरु का धाम विराट। गुरू शिष्य के खोलता, सार...