ऐसी गति संसार की ज्यों गाडर की ठाठ .....
कबीर भी क्या ही ऊंची बात कह गए हैं .....
ऐसी गति संसार की ज्यों गाडर की ठाठ,
एक परी जेहि गाढ़ में, सबै जांहि तेहि बाट |
आपने भेड़ों का झुण्ड चलते तो देखा ही होगा, वे एक के पीछे एक चलती जाती हैं सिर झुकाए ,बिना इधर-उधर देखे हुए ....फिर यदि आगे की एक भेड किसी गड्ढे में गिर जाए तो पीछे पीछे सभी उसी गड्ढे में गिरती जायेंगीं बिना यह देखे कि आखिर आगे वाली कहाँ गयी .....| कबीर कहते हैं कि संसार की यही गति है 'भेड चाल ' इसी को कहते हैं |
अधनंगे होकर मेट्रो में चलना कुछ भेड़ों ने यूंही शुरू किया....विदेशी भेड़ों ने, अब उनके लिए क्या वे तो सदा ही पेंट-डाउन रहते हैं, नों पेंट उनके लिए क्या नयी बात है | अब विदेशी तो कुतिया भी अक्लमंद 'मेंम-साहिबा' होती है भारतीय नकलचियों, अक्ल से पैदल काले अंग्रेजों के लिए, वे क्यों पीछे रहें | चाहे उसका मतलब कुछ हो या न हो | चाहे वे अर्ध-असभ्य, उल-जुलूल लग रहे हों | आप ही देख लीजिये नीचे ....
चित्र---नेशनल हेराल्ड .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (17-01-2014) को "सपनों को मत रोको" (चर्चा मंच-1495) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी...
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