श्याम स्मृति –आज की कविता...भाव शब्द व कथ्य....
मीराबाई को राणा जी द्वारा सताए जाने पर परामर्श रूप में तुलसी ने कहा...
जाके प्रिय न राम वैदेही |
ताजिये ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही |
आज का कवि इस सन्दर्भ में परामर्श देता तो
क्या कहता.....
‘राजा मस्त पिए बैठा है
करता अत्याचार |
भक्ति में रोड़े अटकाए ,
रानी बैठी मुंह लटकाए ;
त्याग करे यदि राजा का वो-
तभी मिले सुख-चैन ,
करे भक्ति दिन-रैन,
छोड़ कर बैठे सब घर द्वार |
भाव, तथ्य व
अर्थार्थ वही है ..परन्तु भाषा व कथ्य–शिल्प...जिसे लट्ठमार भी कहा जा सकता है |
यह असाहित्यिकता है | सत्य है कि यह आज के समाज की हताशा, निराशा, कटुता,
कठिनाइयां, सामयिक परिस्थितयां काव्य में झलकती हैं, पर ये सारी परिस्थितियाँ तो
समाज में सदा ही रहती हैं, इनको परिलक्षित कविता भी कही जाती है किन्तु यदि कवि ही
अपनी भाषा व कथ्य भाव पर सौम्य , साहित्यिक, सत्यं शिवं सुन्दरं दृष्टि
नही रखेगा तो सामान्य जन क्या व्यवहार करेगा |
फिर वह कविता ही क्या जिसमें भाव, कथ्य व शिल्प सौन्दर्य न हो |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (30-01-2014) को बसंत की छटा ( चर्चा - 1507 ) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी..
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