यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

"ग़ज़ल - गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मोहब्बत की हसीं राहें
तुम्हारे प्यार को खुश्बू बसा, इस दिल में लाया हूँ
मोहब्बत की हसीं राहों में, यादें छोड़ आया हूँ

कभी जब याद करके गाँव की, गलियों से गुजरेगें
मैं अपनी खिल-खिलाहट के वो मंजर छोड़ आया हूँ

मेरी उल्फत की यादें, जब कभी तुम भूल जाओगे
चुभाने के लिये दिल में,  मैं काँटे छोड़ आया हूँ

जहाँ में खुश्बू-ए-गुल सा महकना, घर को महकाना
तुम्हारे बन्द कमरों में,  उजाले छोड़ आया हूँ

तमन्नाओं को मेरी, तुमने अपना रंग दे डाला
दुआयें खुशनसीबी की, तुम्हें मैं छोड़ आया हूँ

उन्हें अब दायरों में बाँधना, बदनाम करना है
महकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ
(गुरू सहाय भटनागर "बदनाम")

2 टिप्‍पणियां:

फ़ॉलोअर

दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') --

 दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- चलो गुरू के द्वार पर, गुरु का धाम विराट। गुरू शिष्य के खोलता, सार...