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शनिवार, 3 मई 2014

चार पंक्तियाँ परिचय हेतु

हैं सुनाने  को  कई  गीत  मगर  साज़ नहीँ,
बात करनी है मगर साथ में आवाज़ नहीं।
अब गिला कैसा और तुमसे शिकायत कैसी,
रूठना क्या जो मनाने का ही रिवाज़ नहीँ।


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-05-2014) को "संसार अनोखा लेखन का" (चर्चा मंच-1602) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. रूटना क्ा जब मनाने का रिवाज़ नही है, वाह ।

    जवाब देंहटाएं

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