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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये


पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस

 
चढ़- चढ़ जावै साँस , कहाँ वह हरियाली है
आँख  मोतियाबिंद , उसी की  अब लाली है


छाँह गहे अब कौन , नहीं रहि छाया शीतल
रहा रात भर खाँस, अब सठिया गया पीपल ||


 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (18-10-2013) "मैं तो यूँ ही बुनता हूँ (चर्चा मंचःअंक-1402) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. सशक्त अभिव्यंजना पीपल के मिस मेरी तेरी उसकी बात पीपल का मानवीकरण।

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार कुण्डली छंद ......
    -------पर मेरे विचार से पीपल की यही विशेषता होती है कि वह कभी पातहीन नहीं होता चाहे जितना पुराना होजाए .......

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
    आप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 19/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...

    सूचनार्थ।

    जवाब देंहटाएं

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