प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस
चढ़- चढ़ जावै साँस , कहाँ वह हरियाली है
आँख मोतियाबिंद , उसी की अब लाली है
छाँह गहे अब कौन , नहीं रहि छाया शीतल
रहा रात भर खाँस, अब सठिया गया पीपल ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (18-10-2013) "मैं तो यूँ ही बुनता हूँ (चर्चा मंचःअंक-1402) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सशक्त अभिव्यंजना पीपल के मिस मेरी तेरी उसकी बात पीपल का मानवीकरण।
जवाब देंहटाएंशानदार कुण्डली छंद ......
जवाब देंहटाएं-------पर मेरे विचार से पीपल की यही विशेषता होती है कि वह कभी पातहीन नहीं होता चाहे जितना पुराना होजाए .......
बेहतरीन कुण्डली लिखने के लिए बधाई ! अरुण जी ..!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंआप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 19/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...
सूचनार्थ।