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शुक्रवार, 16 मार्च 2018

दोहे श्याम के----डा श्याम गुप्त

दोहे श्याम के----

ईश्वर अल्ला कब मिले , हमें झगड़ते यार ,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही करता है तकरार |

काली करी कमाई, अरबों लिए कमाय,
क्यों घबराये चित्त में, मंदिर दे बनवाय |

चाहे पद पूजन करो,या साष्टांग प्रणाम,
काम तभी बन पायगा, चढ़े चढ़ावा दाम |

नाग मोर मृग सिंह मिले, पद कुर्सी की नीति ,
श्याम' सभा भई तपोवन, बनी दुश्मनी प्रीति |

अपनी लाज लुटा रही, द्रुपुद सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूं, कृष्ण खड़े लाचार |

दानवता से लड़ रहे सज्जन अजहुं तमाम,
श्याम आज भी चल रहा देवासुर संग्राम |

श्याम गर्व मत कीजिये, कहते सकल प्रवीन,
दान भोग और नाश हैं, धन की गतियाँ तीन |

काव्य जो अपना हो लिखा, माला निज गुँथ पाय |
चन्दन जो खुद ही घिसा, ये अति शोभा पायं |

अपने अपने धर्म रत, कर्म करे जो नित्य,
वही नागरिक धन्य है, मिले परम पद मुक्ति |

सत्य जानकर क्यों भला ज्ञानी चुप रह जाय,
सत्य मौन से श्रेष्ठ है, कहदें भुजा उठाय | .

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-03-2017) को "नवसम्वतसर, मन में चाह जगाता है" (चर्चा अंक-2913) नव सम्वतसर की हार्दिक शुभकामनाएँ पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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