चार चरण दो पंक्तियाँ, लगता ललित-ललाम। इसीलिए इस छन्द ने, पाया दोहा नाम।१। लुप्त हो गया काव्य का, नभ में सूरज आज। बिना छन्द रचना करें, ज्यादातर कविराज।२। बिन मर्यादा यश मिले, छन्दों का क्या काम। पद्य बताकर गद्य को, करते हैं बदनाम।३। चार दिनों की ज़िन्दग़ी, काहे का अभिमान। धरा यहीं रह जायेगा, धन के साथ गुमान।४। प्यार जगत में छेड़ता, मन वीणा के तार। कुदरत ने हमको दिया, ये अमोल उपहार।५। प्यार नहीं है वासना, ये तो है अनुबन्ध। प्यार शब्द से जुड़ा है, तन-मन का सम्बन्ध।६। चटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार। सिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार।७। ढाई आखर प्यार का, देता है सन्ताप। हार-जीत के खेल में, बढ़ जाता है ताप।९। मुखिया की चलती नहीं, सबके भिन्न विचार। ऐसा घर कैसे चले, जिसमें सब सरदार।१०। |
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रविवार, 30 जून 2013
“कुछ फुटकर दोहे मेरे भी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जवाब देंहटाएंहै तो चिल्हर
पर है कीमती
इसका एक-एक शब्द
सादर
ati sundar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदोहा बचपन से सुनता पढ़ता आ रहा हूँ इसलिये दोहा पढ़कर जो आनन्द मिलता है वह व्यक्त करना भी कठिन है।
जवाब देंहटाएंआज के दोहे पढ़कर आनंदातिरेक की स्थिति है।
बहुत खूबसूरत ,इनमें जीवन के सार छूपें है
जवाब देंहटाएंसादर
भारती दास
सुन्दर दोहे-
जवाब देंहटाएंतन मन मोहे-
दो पक्तियों में दमदार बात कहने की शक्ति तो दोहे में ही है
जवाब देंहटाएंlatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
बहुत बहुत बधाई आदरणीय शास्त्री जी बहुत सुन्दर दोहे सभी एक से बढ़ कर एक बहुत कुछ कहते हुए अंतिम दो हे के लिए तो बारम्बार बधाई
जवाब देंहटाएंkavya vidha ka doha to,hai hi mooladhar.kam shabdo me kar sake,apane vyakt vichar.
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