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रविवार, 30 जून 2013

दोहा छंद विधान (अरुन शर्मा 'अनन्त')

दोहे के माध्यम से दोहे की परिभाषा :-
(छंद दोहा : अर्धसम मात्रिक छंद, चार चरण, विषम चरण तेरह मात्रा, सम चरण ग्यारह मात्रा, अंत पताका अर्थात गुरु लघु से, विषम के आदि में जगण वर्जित, प्रकार तेईस) 
 
तेरह ग्यारह क्रम रहे, मात्राओं का रूप |
चार चरण का अर्धसम, शोभा दिव्य अनूप || 
 
विषम आदि वर्जित जगण, सबसे इसकी प्रीति |
गुरु-लघु अंतहिं सम चरण, दोहे की यह रीति || 
 
विषम चरण के अंत में, चार गणों को त्याग |
यगण मगण वर्जित तगण, भंग जगण से राग ||
अम्बरीष श्रीवास्तव 
 
दोहा चार चरणों से युक्त एक अर्धसम मात्रिक छंद है जिसके पहले व तीसरे चरण में १३, १३ मात्राएँ तथा दूसरे व चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं, दोहे के सम चरणों का अंत 'पताका' अर्थात गुरु लघु से होता है तथा इसके विषम चरणों में जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है ! अर्थात दोहे के विषम चरणों के अंत में यगण(यमाता १२२) मगण (मातारा २२२) तगण (ताराज २२१) व जगण (जभान १२१) का प्रयोग वर्जित है जबकि वहाँ पर सगण (सलगा ११२) , रगण (राजभा २१२) अथवा नगण(नसल १११) आने से दोहे में उत्तम गेयता बनी रहती है. 
 
सम चरणों के अंत में जगण अथवा तगण आना चाहिए अर्थात अंत में पताका (गुरु लघु) अनिवार्य है|
दोहे की रचना करते समय पहले इसे गाकर लिख लेना चाहिए तत्पश्चात इसकी मात्राएँ जांचनी चाहिए ! 
इसमें गेयता का होना अनिवार्य है ! दोहे के तेईस प्रकार होते हैं | जिनका वर्णन बाद में किया जाएगा |
अम्बरीष श्रीवास्तव

शीर्षक : माँ
माँ तुमसे जीवन मिला, माँ तुमसे यह रूप ।
माँ तुम मेरी छाँव हो, माँ तुम मेरी धूप ।।


तू मेरा भगवान माँ, तू मेरा संसार ।
तेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।।


पूजा माँ की कीजिये, कीजे न तिरस्कार ।
धरती पर मिलता नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।


छू मंतर पीड़ा करे, भर दे पल में घाव ।
माँ की ममता का कहीं, कोई मोल न भाव ।।


माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
संभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।

अरुन शर्मा 'अनन्त'

सभी मित्रों से निवेदन है, यदि वे अनुमोदन का दोहों अनुमोदन दोहा लिख कर करेंगे तो अधिक प्रसन्नता होगी.
--
मित्रों!
ब्लॉग की शुरुआत अरुण शर्मा "अनन्त" की पोस्ट से की जा रही है।
आप भी अपने दोहे यहाँ पोस्ट कीजिए। जिसकी समीक्षा आपके मेल में आपको मिलेगी।
आपका अपना ही..
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
इस ब्लॉग का चौकीदार

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण जी!
    दोहा छन्द की व्याख्या आपने बहुत विद्वता से की है।
    आभार आपका!

    जवाब देंहटाएं
  2. दोहों में समझा गये, क्या है दोहा छन्द
    सुंदरतम शुरुवात से, मिला हमें आनन्द ||



    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी टिप्पणी ने प्रेरित किया।
      दोहों के कारण हुए, सबसे अधिक अमीर।
      ऐसे सन्त फकीर थे, अपने सन्त कबीर ।।

      असावधानी से लिखे शुरुवात के स्थान पर 👉शुरुआत👈 का प्रयोग करें ।

      हटाएं
  3. दोहा है समझा दिया ,सुंदर है आगाज
    नए नए है रूप लिए ,दोहा रचना आज

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह अनुज वाह.......रचनाकार के नाम सहित दोहों में ही दोहा-रचना विधान प्रस्तुत करके आपने हम पर अत्यंत उपकार किया है ....सस्नेह :-)

    जवाब देंहटाएं

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