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सोमवार, 8 जुलाई 2019

गीत

गीत   लिखूँ   प्रीत   में  मनमीत  के  लिखूँ
भावना  में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
मन्त्रमुग्ध    ही    रहा    हूँ    मोहपाश    में
दृष्टिपथ    निहार   रहीं   पलकें   साथ   में
गर्मीयों   की   बात   करूँ  शीत  के  लिखूँ
भावना  में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
विभीषिका कठिन वसी  हृदय  के ओक में
श्वासें भी साथ  छोड़ती  हैं  शोक - शोक में
वर्तमान   की    लिखूँ   व्यतीत   के   लिखूँ
भावना   में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
संयोग   सुमन   सौरभित  सुवास  जो  दिये
सोंधी   सुगंध   सच  में  वरसात   की  लिये
जो   भाव   बाँध   लेते  उस  रीत  के  लिखूँ
भावना   में    बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
आभाव में  स्वभाव  से  ही  भाव  ही  किया
अलकों की सघन छाँव में नित आसरा दिया
हार की  लिखूँ  या  अपने  जीत   के   लिखूँ
भावना    में    बज   रहे   संगीत   के  लिखूँ।।
मनुहार    विप्रलम्भ   में   भी   भूलता   नहीं
संयोग  विना  मन - मधुप  भी  झूलता  नहीं
अंतरंग     के    उसी     अतीत    के   लिखूँ।।
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/07/blog-post.html

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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