तुम तुम और तुम
सकल रूप रस भाव अवस्थित , तुम ही तुम हो सकल विश्व में |
सकल विश्व तुम में स्थित माँ,अखिल विश्व में तुम ही तुम हो |
तुम तुम तुम तुम , तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो तुम ही तुम हो ||
तेरी वींणा के ही नाद से, जीवन नाद उदित होता है |
तेरी स्वर लहरी से ही माँ ,जीवन नाद मुदित होता है |
ज्ञान चेतना मान तुम्ही हो ,जग कारक विज्ञान तुम्ही हो |
तुम जीवन की ज्ञान लहर हो,भाव कर्म शुचि लहर तुम्ही हो |
अंतस मानस या अंतर्मन ,अंतर्हृदय तुम्हारी वाणी |
अंतर्द्वंद्व -द्वंद्व हो तुम ही , जीव जगत सम्बन्ध तुम्ही हो |
तेरा प्रीति निनाद न होता , जग का कुछ संबाद न होता |
जग के कण कण भाव भाव में,केवल तुम हो,तुम ही तुम हो |
जग कारक जग धारक तुम हो,तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो |
तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो |
तुम्ही शक्ति, क्रिया, कर्ता हो, तुम्ही ब्रह्म इच्छा माया हो |
इस विराट को रचने वाली, उस विराट की कृति काया हो |
दया कृपा अनुरक्ति तुम्ही हो, ममता माया भक्ति तुम्ही हो |
अखिल भुवन में तेरी माया,तुझ में सब ब्रह्माण्ड समाया |
गीत हो या सुर संगम हे माँ!, काव्य कर्म हो या कृति प्रणयन |
सकल विश्व के गुण भावों में, तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो |
तेरी कृपा-दृष्टि का हे माँ, श्याम के तन मन पर साया हो |
मन के कण कण अन्तर्मन में, तेरी प्रीति-मयी छाया हो ।
स्रिष्टि हो स्थिति या लय हो माँ!, सब कारण का कारण, तुम हो ।
तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम तुम तुम तुम माँ, तुम ही तुम हो ॥
तेरी स्वर लहरी से ही माँ ,जीवन नाद मुदित होता है |
ज्ञान चेतना मान तुम्ही हो ,जग कारक विज्ञान तुम्ही हो |
तुम जीवन की ज्ञान लहर हो,भाव कर्म शुचि लहर तुम्ही हो |
अंतस मानस या अंतर्मन ,अंतर्हृदय तुम्हारी वाणी |
अंतर्द्वंद्व -द्वंद्व हो तुम ही , जीव जगत सम्बन्ध तुम्ही हो |
तेरा प्रीति निनाद न होता , जग का कुछ संबाद न होता |
जग के कण कण भाव भाव में,केवल तुम हो,तुम ही तुम हो |
जग कारक जग धारक तुम हो,तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो |
तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो |
तुम्ही शक्ति, क्रिया, कर्ता हो, तुम्ही ब्रह्म इच्छा माया हो |
इस विराट को रचने वाली, उस विराट की कृति काया हो |
दया कृपा अनुरक्ति तुम्ही हो, ममता माया भक्ति तुम्ही हो |
अखिल भुवन में तेरी माया,तुझ में सब ब्रह्माण्ड समाया |
गीत हो या सुर संगम हे माँ!, काव्य कर्म हो या कृति प्रणयन |
सकल विश्व के गुण भावों में, तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो |
तेरी कृपा-दृष्टि का हे माँ, श्याम के तन मन पर साया हो |
मन के कण कण अन्तर्मन में, तेरी प्रीति-मयी छाया हो ।
स्रिष्टि हो स्थिति या लय हो माँ!, सब कारण का कारण, तुम हो ।
तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम तुम तुम तुम माँ, तुम ही तुम हो ॥
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (25-01-2018) को "कुछ सवाल बस सवाल होते हैं" (चर्चा अंक-2859) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उत्कृष्ट व प्रशंसनीय प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग पर आपके वचारो का इन्तजार