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शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

गुरुवासरीय काव्य-गोष्ठी --- डा श्याम गुप्त ..

गुरुवासरीय काव्य-गोष्ठी ---
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प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली विशिष्ट काव्य-गोष्ठी दिनांक ०५-१०-२०१७ गुरूवार को प्रातः ११ बजे डा श्यामगुप्त के आवास सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई |
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गोष्ठी का शुभारम्भ डा श्यामगुप्त के वाणी वन्दना से हुआ | डा योगेश गुप्त, डा सुरेश शुक्ल, अनिल किशोर निडर, श्री बिनोद कुमार सिन्हा द्वारा भी वाणी वंदना की गयी |
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नव सृजन संस्था एवं अधीश कुमार विचार मंच की ओर से श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं श्री बिनोद कुमार सिन्हा को सम्मान पत्र देकर हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया |
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श्री विनोद कुमार सिन्हा की चतुष्पदी पर डा सुरेश शुक्ल के प्रश्न कि यह गीत है या अगीत छंद पर चर्चा हुई | सभी ने तुकांत व अतुकांत कविता पर अपने अपने विचार व्यक्त किये | अगीत रचनाकार विनोद कुमार सिन्हा जी ने अपना मंतव्य अपने प्रसिद्द अगीतांश -- डर लगता है अगीत / तेरी आवारगी से....से प्रकट किया |.
----- .डा रंगनाथ मिश्र सत्य जी ने बताया की यह लय गति यति व गेयता युक्त है, हाँ तुकांत नहीं है अतः यह चार पंक्तियों की अगीत रचना है |
------- डा श्याम गुप्त ने स्पष्ट करते हुये कहा कि यह अगीत विधा का नव-अगीत छंद है जिसमें चार से पांच पंक्तियाँ होती हैं, पांच से अधिक नहीं | यद्यपि यह ध्वन्यात्मक अन्त्यानुप्रास युक्त है –यथा--होता व ऐसा | जो पूर्व अगीत-काल में, पन्त, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद व हरिऔध द्वारा प्रयुक्त किया जाता रहा ‘विषम मात्रिक’ छंद के अनुरूप है यथा----अयोध्या प्रसाद उपाध्याय हरिऔध की एक सुप्रसिद्ध रचना---
दिवस का अवसान समीप था,
गगन भी था कुछ लोहित हो चला |
तरुशिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल वल्लभ की विभा |

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यशपाल सभागार, हिन्दी संस्थान में अपने कल के विशाल हिन्दी सम्मान आयोजन में दिन भर अति व्यस्त रहने के कारण अत्यंत श्रमित व क्लांत होते हुए भी साहित्यानुरागी नव सृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त गोष्ठी में पधारे | डा योगेश द्वारा कुछ साहित्यकारों के कार्यक्रम की कमियों पर आलोचना पर क्षोभ वक्त करने पर डा सत्य एवं अन्य कवियों का मत था कि इससे और अधिक विज्ञापन ही होता है अतः बुरा नहीं मानना चाहिए अपना काम करते रहना चाहिए |
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------ डा योगेश गुप्त ने अपने चिरपरिचित विशिष्ट आद्यात्मिक शैली में सुनाया-
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'मनुष्य भी तो
एक शब्द है,
पर कविता से प्रथक हुआ
एक कोरा शब्द |'
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------प्राची संस्था के अध्यक्ष डा सुरेश शुक्ल ने श्रृंगार गीत प्रस्तुत किया-
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‘साथ निभावै करे बचन,ई जीवन भर अखरा |
तुमका निरखत जीवन बीता, तबहूँ मन न भरा |
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-------- श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर ने पुष्ट व सार्थक दोहों से नारी महिमा का गुणगान किया—
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‘नारी अबला है नहीं, वह भी है बलवान |
कुश्ती मैं जीते पदक ,बनी सबल पहचान |
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------- बिनोद सिन्हा जी का अगीत जिस पर चर्चा हुई ---
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‘प्रकृति वश बिन कर्म प्रवृत्ति
जग में जीवन असंभव होता |
सफल सुन्दर हो भविष्य,
करो मनुज कुछ कर्म ऐसा |
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-------- डा श्रीकृष्ण सिंह अखिलेश ने नदी व लहर की तारतम्यता प्रस्तुत की---
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‘मैं नदी हूँ, तुम लहर हो, साथ में चुपचाप बहना |
होसके सब ताप सहना,और जग से कुछ न कहना |
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------- डा श्याम गुप्त ने शरद पूर्णिमा के अवसर पर एक श्रृंगार गीत यूं प्रस्तुत किया—
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आज फिर क्यों याद आयें, वो सभी बिसरी सी बातें |
वो शरद की चांदनी में, चाँद और पूनम की रातें |
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------- सुषमा गुप्ता जी ने अपने आज के व्यस्त कार्यक्रम से कुछ समय निकलते हुए गोष्ठी में भाग लिया और यह गीत प्रस्तुत किया --
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‘चूल्हे चौके की खटपट में, समय भला कब मिल पाता है|
पर मन में मन मीत बसा हो, सब कुछ संभव होजाता है |
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-------साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने स्वच्छता अभियान व पर्यावरण प्रदूषण जागरण पर छंद सुनाये ---
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चारों ओर फ़ैली है गन्दगी यहाँ मित्र ,
नालियों में पोलीथीन जाने मत दीजिये |
गाँव और शहरों में वृक्ष लगाएं आप,
धरती प्रदूषण से मुक्त कर दीजिये |
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डा योगेश गुप्त का अपने चिरपरिचित विशिष्ट आद्यात्मिक शैलीमें रचना


1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-10-2017) को "ब्लॉग के धुरन्धर" (चर्चा अंक 2750) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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