यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

थोड़ासाबॉलीवुड़  चौदहवीं का चाँद फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी थी। और इसके गाने चौदहवीं का चाँद हो से गुरूदत्त साहब को कुछ खास लगाव हो गया था। सो उन्होंने केवल इस गाने को रंगीन फिल्माने का फैसला किया। जर्मनी से मशीनें व टेक्नीशयन्स बुलवाए गए। और गाने का रंगीन फिल्मांकन शुरू हो गया। बहुत सी दिक्कतें पेश आई,जैसे बहुत तेज आर्क लाइट्स में काम करने में वहीदा जी को परेशानी हो रही थी खासकर क्लोज अप्स में गर्मी से गुरूदत्त और वहीदा जी का बुरा हाल था। खैर जैसे तैसे कर गाने की शूटिंग पूरी हुई। और एड़िटिंग वगैरह के बाद फिल्म रिलीज के लिए तैयार थी।
मगर सेंसर बोर्ड ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी।
उनका कहना था कि गाने "चौदहवीं का चाँद हो या.." में वहीदा जी की आँखों में लाली झलक रही है, जिससे उनकी आँखें सिड़क्टिव लग रही हैं। इसलिए सेंसर बोर्ड इसे पास नही कर सकता। फिल्म की टीम ने और गुरूदत्त जी ने लाख समझाया के देखिये, ये मेकअप के कारण नही है बल्कि तेज आर्क लाइट्स में घंटों शूटिंग करने की वजह से वहीदा जी की आँखें लाल दिख रही हैं। पर सेंसर बोर्ड टस से मस ना हुआ और आखिरकार थक कर गुरूदत्त जी को फिल्म इस गाने के ब्लैक एंड व्हाइट वर्जन के साथ ही रिलीज करनी पड़ी। ऐसा था वो समय। 1960 में आई इस फिल्म के संगीतकार रवि थे व गीतकार शकील बदायूनीं। मोहम्मद रफी साहब की आवाज से सजा ये गीत हिन्दी सिनेमा जगत में आज भी मील का पत्थर है। कौन होगा जिसने ये गीत कभी गुनगुनाया न होगा।
पारूल सिंह

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-10-2017) को "ब्लॉग के धुरन्धर" (चर्चा अंक 2750) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. सेंसर बोर्ड की कुर्सी में शुरू से ही कुछ न कुछ गड़बड़ रही है

    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...