यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 16 जून 2015

लघुकथा "जुनून" अमन 'चाँदपुरी' (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों आज मुझे अमन 'चाँदपुरी' द्वारा भेजी गयी 
एक लघुकथा प्राप्त हुई।
अमन 'चाँदपुरी' एक नवोदित हस्ताक्षर हैं।
जिनका परिचय निम्नवत् है-
नाम- अमन सिहं 
जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997 ई. 
पता- ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर 
तहसील- टांडा 
जिला- अम्बेडकर नगर 
(उ.प्र.)-224230
संपर्क : 09721869421
ई-मेल : kaviamanchandpuri@gmail.com
'जुनून' (लघु कहानी)
     मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में एक पैर खो देने के बाद रमेश को खाट (चारपाई) पर पड़े-पड़े घुटन सी महसूस होती थी। भागम-भाग की इस दुनिया में एक खाट तक ही उसका जीवन सीमित हो गया था। अन्य भाई-बहनों को चलता देख रमेश खुद को बेबस और लाचार समझने लगा था।
    एक दिन समाचार पत्र पढते समय खेल पृष्ठ के एक लेख पर रमेश की नज़र पड़ी। शीर्षक था - 'जल्दी चढ़ी पहाड़'
     रमेश ने इसे विस्तार से पढ़ा। इसमें इन्दू नामक एक पर्वतारोही महिला पर लेख था, जिसने एवरेस्ट पर सबसे कम समय मात्र आठ घण्टे चालिस मिनट में ही विजय प्राप्त कर इतिहास रचा था। रमेश ने इसी से सीख लेकर एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की ठानी।
      रमेश ने अपने पिता जी से इस विषय में बात की और कुछ दिनों के प्रशिक्षण के बाद ही कृत्रिम पैरों की सहायता से सफलता पूर्वक एवरेस्ट पर चढ़ाई की। समय थोड़ा ज्यादा लगा, लगभग तेईस घंटे जो कि एक लंगड़े व्यक्ति के लिहाज से काफी ठीक और बेहतर था।
     मगर एवरेस्ट की चोटी से नीचे उतरते समय दुर्घटनावश गिर जाने के कारण रमेश की मौत हो गई। लेकिन उसने अपने जीवितता, हौसले और जुनून के दम पर जो काम कर दिखलाया वह आने वाली पढ़ी के लिए मिशाल बन गई।
     शायद रमेश को एवरेस्ट चढ़ने का मौका ही न मिला होता, मगर पिता जी के समक्ष उसने (रमेश) जो तर्क प्रस्तुत किया, उससे वह (पिता जी) निरुत्तर हो गये।
      रमेश का कहना था - 'मैं इस चार पाँव के खाट पर पड़े-पड़े अपना जीवन नहीं बिता सकता, एक न एक दिन तो मुझे मरना ही है। लेकिन इस खाट पर पड़े-पड़े तो मैं रोज मर रहा हूँ, मुझे चन्द दिन तो अच्छे से जी लेने दो। इंदू ने एवरेस्ट की चढ़ाई कुछ ही घन्टों में पूरी कर ली, मगर मैं अपाहिज अगर एवरेस्ट पर एक या दो दिन में भी चढ़ सका तो अपना जीवन धन्य समझुगाँ, अगर न चढ़ सका और गिरकर मर गया तो भी खुद को खुशनसीब समझुगाँ कि मैनें अपने जीवन में कुछ करने की ठानी तो थी, क्या हुआ जो सफलता नहीं मिली।'
लेकिन पाठकों रमेश को सफलता मिली।
-- अमन चाँदपुरी
नोट- दोस्तों ये मत सोचिएगा कि ये कहानी मैनें अपने जनपद की प्रसिद्ध पूर्व बालीबाल खिलाड़ी एवं पर्वतारोही एवरेस्ट विजेता अरुणिमा सिंहा पर लिखी है। इसे मैनें नवम्बर 2012 में लिखा था। और अगले ही साल लखनऊ से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका 'गाँव दुआर' के मार्च अंक में पृष्ठ नम्बर सात पर यह प्रकाशित हुई थी। जब कि अरुणिमा जी ने उसी साल इक्कीस मई को एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता पायी थी। आप ये नहीं कह सकते कि इस कहनी की प्रेरणा अरुणिमा जी हैं। लेकिन हाँ इस कहानी को अरुणिमा जी ने वास्तविकता में परिवर्तित कर दिया। ये मेरा सौभाग्य है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...