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हार में है छिपा जीत का आचरण। 
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।। 
बात कहने से पहले विचारो जरा 
मैल दर्पण का अपने उतारो जरा 
तन सँवारो जरा, मन निखारो जरा 
आइने में स्वयं को निहारो जरा 
दर्प का सब हटा दीजिए आवरण। 
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।। 
मत समझना सरल, ज़िन्दग़ी की डगर 
अज़नबी लोग हैं, अज़नबी है नगर 
ताल में जोहते बाट मोटे मगर 
मीत ही मीत के पर रहा है कतर 
सावधानी से आगे बढ़ाना चरण। 
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।। 
मनके मनकों से होती है माला बड़ी 
तोड़ना मत कभी मोतियों की लड़ी 
रोज़ आती नहीं है मिलन की घड़ी 
तोड़ने में लगी आज दुनिया कड़ी 
रिश्ते-नातों का मुश्किल है पोषण-भरण। 
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।। 
वक्त की मार से तार टूटे नहीं 
भीड़ में मीत का हाथ छूटे नहीं 
खीर का अब भरा पात्र फूटे नहीं 
लाज लम्पट यहाँ कोई लूटे नहीं 
प्रीत के गीत से कीजिए जागरण 
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।। | 
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बुधवार, 12 अक्टूबर 2016
गीत "गीत का व्याकरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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