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शनिवार, 9 मई 2015

गज़ल्नुमा कविता


पत्नी एक इंसान है ,उसे देवी मत बनाइये
पति भी हाड़-मांस का है,उसे देव न बनाइये |

इंसान है तो उसे इंसान ही रहने दीजिये
न उसे राक्षस, न दानव ,न देव बनाइये |

देवी बनाकर पूजा नारी को, फिर किया छल
परदे के पीछे उसको, शोषण का शिकार न बनाइये |

पुत्र होना या पुत्री होना ,इसका जिम्मेदार है पुरुष

दकियानुस बनकर ,निर्दोष औरत को दोषी न बनाइये |


गर दोष नारी में है ,दोष पुरुष में भी है
दोषारोपण में जीवन को नरक न बनाइये |

कोई नहीं पूर्ण इस जग में,नारी हो या पुरुष हो 
पूर्णता के चक्कर में ,जीवन को दुखी न बनाइये |

कालीपद 'प्रसाद' 

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