tag:blogger.com,1999:blog-7421790880043366399.post8956779563671916537..comments2024-01-19T14:10:47.867+05:30Comments on सृजन मंच ऑनलाइन: भारतीय धर्म, दर्शन राष्ट्र -संस्कृति के विरुद्ध नवीन आवाजें व उनका यथातथ्य निराकरण --- एक क्रमिक आलेख--- पोस्ट एक --डा श्याम गुप्त डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-7421790880043366399.post-22538060690064617012018-03-09T11:50:30.588+05:302018-03-09T11:50:30.588+05:30सचल मन वैज्ञानिक ध्यान ( Movable Mind Scientific M...सचल मन वैज्ञानिक ध्यान ( Movable Mind Scientific Meditation- MMST)<br />(ध्यान की आधुनिक वैज्ञानिक विधि)<br /><br />आधुनिक समय की आपाधापी को देखते हुये मुझे समय के हिसाब से परिवर्तित होने वाली ध्यान की विधि के विषय में सोंचना पडा। विशेष बात यह है आप यह सब अपने घर पर ही करें। कहीं भटके नहीं। यह सब बिना शुल्क है। हां यदि आप यह करते हैं तो कुछ तो शुल्क देना होगा (शास्त्रॉनुसार यह तब ही जल्दी फलित होगा) । तो आप दक्षिना स्वरुप किसी गरीब की सहायता कर दे। किसी बालक को पढने हेतु साम्रगी दे दे। गौ को गरीब को भोजन करा दे। मंदिर में मिठाई भोजन बांट दे। प्याउ खोल दें। किसी सनातन प्रचारक साधु संत को कुछ देदे। पर किसी हट्टे कट्टे धर्म के ठेकेदार को न दें। <br />मित्रों इस विधि में आप मंत्र जप और शरीर के विभिन्न अंगों का साथ लेकर ध्यान की गहरी अवस्था में जा सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य के ध्यान की विधि अलग अलग उसके कर्म के हिसाब से होगी। कुछ की कुंडलनी भी जागृत हो सकती है। कुछ विशेष भयानक अनुभव भी हो सकते हैं। पर आप डरें मत। हर समस्या का समाधान होगा। हर हाल में आपकी धार्मिकता बढेगी। <br />यह विधियां हर जाति धर्म समुदाय चाहे मुस्लिम हो ईसाई हो जैन हो बौद्द हो कोई भी हो सबके लिये कारगर है। जो जिस धर्म का होगा उसको उसी के धर्म के हिसाब से ध्यान बताया जायेगा। <br /> मैं गुरु नहीं हूं और न अपने को कहलाना पसंद करुंगा। मैं दास हूं प्रभु का वोही कहलाना पसंद करुंगा। जैसे प्रभुदास, सर, विपुल जी या विपुल भी चलेगा। <br />आज बडी बडी फीस लेकर और नकली गुरुओ की दुकानें प्राय: भोली जनता को भ्रमित कर देते हैं। कहीं ब्र्ह्म विद्या की कहीं कुंडलनी की कहीं सिद्दी की तमाम दुकानें खुली हुई हैं। पैसे दो ज्ञान लो। यह सत्य है कलियुग में ईश प्राप्ति बेहद आसान है। पर इतनी आसान भी नहीं कि किसी के पिता की सम्पत्ति कि जैसे चाहो बेच दो। एक साधारण से ध्यान को, जिसमें प्रभु समर्पण बेहद आवश्यक है, उसको नये नये नाम देकर कहीं त्राटक तो कहीं विपश्यना, तो कहीं शब्द योग, नाद योग, राजयोग पता नहीं किन किन नामों से बडी बडी दुकानें चल रहीं है। जो पैसा जन सेवा में लगना चाहिये उसको प्रचार में लगा कर अपनी दुकान चमकाने की होड लगी है। अनुभव जरा सा हुआ कि दुकान सजा ली बिना परम्परा के गुरु बन बैठे। आज मेरे 1 करोड, मेरे 50 लाख दुनिया में अनुयायी हैं। बस इसी बात का गर्व। इन नकली अनुभवहीन दुकानदारों से पूछो कि अहम ब्रम्हास्मि या एकोअहम द्वितियोनास्ति या सोहम अनुभूति में क्या होता है तो सब के सब बगलें झाकेंगे। चलो देव दर्शन की अनुभुति कैसे होती है तो मुंह चुरायेगे। यह पापी जानते नहीं कि जब योग होता है तो कैसा लगता है तो किताबों में देखेंगे। इन दुष्टों से पूछो चलो किसी चेले को आगे क्या होगा तो भाग ही जायेंगे या हरि ओम बोलकर कन्नी काट लेंगें। जगत गुरु, जगतमाता, अखंडमंडलाकार, योगीराज जैसे नामपट्ट वाले ढोग़ी पहले खुद जाने कि ब्रह्म क्या है। जिस दिन जान लेंगे उस दिन यह नामपट्ट हटा लेंगें। पर इनको न जानना है न इसकी इच्छा है। इनको तो भगवान के नाम पर दुकान चलाकर शोहरत पैसा और भोग चाहिये। भले ही बाद में नरक भोंगे। ओशो की तरह प्रेत योनि में भटके पर अभी तो मजा ले ले। <br />अरे मूर्खों सरल बनो भोली भाली जनता को ठगो मत। धन सम्पत्ति सब प्रभु ऐसे ही दे देता है। दुष्टो श्रेष्ठ सनातन का प्रचार करो। श्रीमदभग्वदगीता को जन जन तक कल्यान के लिये पहुचाओ। वेद वाणी बिना स्वार्थ के प्रसारित करो। ईश का अनुभव बिना शुल्क बिना गुरु बने कराओ। रे पगलों पाप के भागीदार मत बनों। आंखें खोलो जाग जाओ। <br /><br />विपुल सेन। नवी मुम्बई\ 09969680093 <br /><br />प्रभुदास विपुल सेन / Prabhudas Vipul Sen https://www.blogger.com/profile/10424307204968551161noreply@blogger.com