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सोमवार, 21 मार्च 2016

क्या होली की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है-होली के अवसर पर एक विचार --डा श्याम गुप्त ...

क्या होली की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है-होली के अवसर पर एक विचार ...


                पहले होली से हफ़्तों पहले गलियों बाज़ारों में निकलना कठिन हुआ
करता था होली के रंगों के कारण | आज सभी होली के दिन आराम से आठ बजे सोकर उठते हैं, चाय-नाश्ता करके, दुकानों आदि पर बिक्री-धंधा करके, दस बजे सोचते हैं की चलो होली का दिन है खेल ही लिया जाय | कुछ पार्कों आदि में चंदे की राशि जुटाकर ठंडाई आदि पीकर रस्म मना ली जाती है और दो चार दोस्तों –पड़ोसियों को रस्मी गुलाल लगाकर,१२ बजे तक सब फुस्स | वह उल्लास, उमंग कहाँ है, सब कुछ मशीन की भांति.....

                      घरों, बाज़ारों में रेडियो, टीवी पर हर वर्ष वही रस्मी घिसे-पिटे...अमिताभ के भौंडी आवाज़ में ..’रंग बरसे ...’ या ‘अंग से अंग मिलाना..’ जैसे भौंडे गीत बजाये जाने लगते हैं जैसे कोइ रस्म निभाई जा रही हो | ब्रज-क्षेत्र में भी सभी कुछ उसी रस्म अदायगी की भाँति किया जा रहा है | फिर मेल मिलाप के इस कथित व प्रचारित पर्व पर प्रत्येक जाति, धर्म, संस्था, पार्टी द्वारा मनाया जाने वाला अपना अपना ‘होली मिलन का खेल’ |
                  क्या वास्तव में आज होली के पर्व की कोइ प्रासंगिकता है या आवश्यकता (या किसी भी त्यौहार की )? शायद नहीं | वस्तुतः मशीनीकरण के इस कल-युग में, अर्थ-युग में मुझे नहीं लगता कि इस पर्व की कोइ भी प्रासंगिकता रह गयी है | होली मनाने के मूल कारण ये थे –

१.पौराणिक प्रसंग, विष्णु भक्त प्रहलाद की भक्ति की स्मृति में |
२, बुराई पर अच्छाई की विजय, बुराई का भष्म होना |
3.सामूहिक पर्व, ‘उत्सव प्रियः मानवाः’, खरीदारी-मेल मिलाप का अवसर, मेले-ठेले में..|
४.कृष्ण द्वारा होली उत्सव जो उस युग में महिलाओं के अधिकारों में कटौती के विरुद्ध संघर्ष था |
५. पर्यावरण व कृषि उत्सव

                आज के आधुनिक युग में जहां नेता-भक्ति या फिर देश-भक्ति महत्वपूर्ण है कैसी विष्णु भक्ति, कैसा उसका स्मरण | जाने कब से भ्रष्टाचार, स्त्री पर अत्याचार आदि बुराइयों को रोकने की बातें हो रही हैं कौन कान देरहा है, कौन भष्म करना चाह रहा है बुराइयों को | जहां तक सामूहिकता , सामाजिकता, उत्सव, मेल-मिलाप आदि की बात है तो जहां रोज रोज ही सन्डे-फनडे, मौल में बिक्री मेले, सेल, खरीदारी, किटी पार्टी, आफिस पार्टियां. ट्रीट पार्टियां चलती रहती हैं, किसे आवश्यकता है होली मेल मिलाप की |
                      कृष्ण राधा का होली उत्सव उस काल में स्त्रियों के अधिकारों के विरुद्ध संघर्ष था | आज नारी सशक्तीकरण के युग में नारी स्वतंत्र होचुकी है, हर कार्य में पुरुषों को मात देने की योज़ना में है, इतनी खुल चुकी है की प्रतिदिन ही कम वस्त्र पहनने एवं स्वयं ही अपने वस्त्र उतारने में लिप्त है, तो महिलाओं के खुलेपन के लिए होली की क्या आवश्यकता है |
                   अब तो प्रतिदिन ही कूड़ा करकट का डिस्पोज़ल होता है अतः होलिका पर जो काठ-कबाड़ जलाया जाता था पर्यावरण सुधार हेतु उसका भी कोइ हेतु नहीं रह गया है | पेड़ों की डालें काट कर होली जलाने का औचित्य ही क्या है | अब तो खेतों में सदा ही कोइ न कोइ फसल होती रहती है, फसल कटाने का एक मौसम कहाँ होता है, फसल ट्रेक्टर व मशीन से कट कर तुरंत घर में रखली जाती है और किसान सिनेमा देखने व फ़िल्मी गीत सुनाने, टीवी देखने में समय बिताते हैं, गीत गाने, नाचने व होली मनाने का अवसर व फुर्सत ही कहाँ है |
                  निश्चय ही आज होली की प्रासंगिकता समाप्त होचुकी है | बस आर्थिक कारणों से प्रचार व रस्म-अदायगी रह गयी है | यह सभी पर्वों के लिए कहा जा सकता है |

बुधवार, 16 मार्च 2016

कैलाश पर शिव-शक्ति युगल के दर्शन------- डा श्याम गुप्त

चित्र में देखिये --एक्सिस मुंडी---- ब्रह्माण्ड  का केंद्र -----कैलाश पर्वत....

----- क्या आपको कैलाश स्थित आदि-देव शिव के दर्शन होते हैं---ध्यान से देखिये, चित्र को बड़ा करें ..... और क्या क्या दृश्यमान होता है ---

------ध्यान से एवं बड़ा करके देखेंगे तो मिलेगा----शिव का भोलेनाथ रूप....शिव का औघडनाथ रूप..... शिव-शक्ति का संयुक्त---अर्धनारीश्वर रूप ....--...


Drshyam Gupta's photo.
कैलाश पर्वत का गूगल द्वारा लिया गया हवाई चित्र -----

ये आज पूछता है बसंत ---डा श्याम गुप्त ...



ये आज पूछता है बसंत

ये आज पूछता है बसंत
क्यों धरा नहीं हुलसाई है |
इस वर्ष नहीं क्या मेरी वह
बासंती पाती आई है |
क्यों रूठे रूठे वन-उपवन,
क्यों सहमी सहमी हैं कलियाँ |
भंवरे क्यों गाते करूण गीत,
क्यों फाग नहीं रचती धनिया |
ये रंग वसंती फीके से ,
है होली का भी हुलास नहीं |
क्यों गलियाँ सूनी-सूनी हैं,
क्यों जन-मन में उल्लास नहीं |
मैं बोला ऐ सुनलो बसंत !
हम खेल चुके बम से होली |
हम झेल चुके हैं सीने पर,
आतंकी संगीनें गोली |
कुछ मांगें खून से भरी हुईं,
कुछ दूध की बोतल खून रंगीं |
कुछ दीप-थाल, कुछ पुष्प-गुच्छ,
भी धूल से लथपथ खून सने |
कुछ लोग हैं खूनी प्यास लिए,
घर में आतंक फैलाते हैं|
गैरों के बहकावे में आ,
अपनों का रक्त बहाते हैं |
कुछ तन मन घायल रक्त सने,
आंसू निर्दोष बहाते हैं|
अब कैसे चढ़े बसन्ती रंग,
अब कौन भला खेले होली ?
यह सुन वसंत भी शरमाया,
वासंती चेहरा लाल हुआ |
नयनों से अश्रु-बिंदु छलके,
आँखों में खून उतर आया |
हुंकार भरी और गरज उठा,
यह रक्त बहाया है किसने!
मानवता के शुचि चेहरे को,
कालिख से पुतवाया किसने |
ऐ उठो सपूतो भारत के,
बासंती रंग पुकार रहा |
मानवता की रक्षा के हित,
तुम भी करलो अभिसार नया |
जो मानवता के दुश्मन हैं,
हो नाता, रिश्ता या साथी |
जो नफ़रत की खेती करते,
वे देश-धर्म के हैं घाती |
यद्यपि अपनों से ही लड़ना,
यह सबसे कठिन परीक्षा है |
सड़ जाए अंग अगर कोई,
उसका कटना ही अच्छा है |
ऐ देश के वीर जवान उठो,
तुम कलमवीर विद्वान् उठो |
ऐ नौनिहाल तुम जाग उठो,
नेता मज़दूर किसान उठो |
होली का एसा उड़े रंग,
मन में इक एसी हो उमंग |
मिलजुलकर देश की रक्षा हित,
देदेंगे तन मन,  अंग-अंग |
 


रविवार, 13 मार्च 2016

मुस्कराहट --गीत----डा श्याम गुप्त

                    
        मुस्कराहट
 ( शीघ्र प्रकाश्य गीत संग्रह--जीवन दृष्टि -से )

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

तन भी सुन्दर है, मन भी है भावों भरा,
भव्य चहरे पर यदि मुस्कराहट नहीं |
ज्ञान है, इच्छा भी, कर्म अनुपम सभी ,
कैसे झलके, न यदि मुस्कुराए कोई |
मन के भावों को कैसे मुखरता मिले,
सौम्य आनन् पर जो मुस्कराहट नहीं |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

ये प्रसाधन ये श्रृंगार साधन सभी,
चाँद लम्हों की सुन्दरता दे पायंगे |
मुस्कराहट खजाना है कुदरत का वह,
चाँद तारों से चहरे दमक जायंगे |
मुस्कराहट तो है अंतर्मन की खुशी,
झिलमिलाती है चहरे को रोशन किये |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

मुस्कराहट तो जीवन की हरियाली है,
ज़िंदगी में चमत्कार कर जायगी |
मन मधुर कल्पनाओं के संसार में,
साद-विचारों से भर मुस्कुराया करे |
सौम्य सुन्दर सहज भाव आभामयी,
रूप सौन्दर्य चहरे पै ले आयगी |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

एक गरिमा है आत्मीयता से भरी,
शिष्ट आचार की है ये पहली झलक |
चाहे कांटे हों राहों में बिखरे हुए,
मुस्कुराओ सभी विघ्न कट जायंगे |
इन गुलावों की शोखी पर डालें नज़र,
रह के काँटों में भी मुस्कुराते हैं वो |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |


















Drshyam Gupta's photo..

सोमवार, 7 मार्च 2016

सृष्टि व मानव जाति के महान समन्वयक—देवाधिदेव शिव ...डा श्याम गुप्त...

महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष -------
 सृष्टि व मानव जाति के महान समन्वयक—देवाधिदेव शिव 
 
                  प्राणी व मानव कुल एवं मानवता के मूल समन्वयक त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने समस्त प्राणी जगत ( देव, दनुज ,मानव, गंधर्व आदि सभी का आपस में सामाजिक संयोजन करके एक विश्व मानव कुल की नींव रखी | शिव जो वस्तुतः निरपेक्ष, सबको साथ लेकर चलने वाले महान समन्वयवादी थे, ने ब्रह्मा, विष्णु के सहयोग से इंद्र आदि देव एवं अन्य असुर आदि सभी कुलों को आपस में समन्वित किया और एक महान मानव समूह को जन्म दिया जो तत्पश्चात ‘आर्य’ कहलाये |
                        यह उस समय की बात है जब भारतीय भूखंड एक द्वीप के रूप में अफ्रीका ( गोंडवाना लेंड) से टूट कर उत्तर में एशिया की ओर बढ़ रहा था | मूल गोंडवानालेंड में विक्सित जीव व आदि-मानव पृथक हुए भारतीय भूखंड के नर्मदा नदी क्षेत्र गोंडवाना प्रदेश में डेनीसोवंस( अर्धविकसित) एवं नियंडर्थल्स (अविकसित) मानव में विक्सित होरहे थे एवं सभ्यता व संकृति का विकास होरहा था| ये मानव यहाँ विक्सित हुए एवं समूहों व दलों में भारत में उत्तर की ओर बढ़ते हुए, भारतीय प्रायद्वीप के एशियन छोर से मिल जाने पर बने मार्ग से उत्तर भारत होते हुए सुदूर उत्तर-मध्य एशिया क्षेत्र - सुमेरु क्षेत्र व मानसरोवर-कैलाश क्षेत्र पहुंचे एवं पश्चिमी एशिया-योरोप से आये अन्य अविकसित/ अर्धबिकसित मानवों से मिलकर विक्सित मानव, होमो सेपियंस में विक्सित हुए| इसीलिये सुमेरु क्षेत्र को भारतीय पौराणिक साहित्य में ब्रह्म-लोक कहा जाता है, जहां ब्रह्मा ने मानव की व सृष्टि की रचना की| सुमेरु के आस-पास के क्षेत्र ही देवलोक, इन्द्रलोक, विष्णु लोक, स्वर्ग आदि कहलाये जहाँ विभिन्न उन्नत प्राणियों मानवों ने सर्वप्रथम बसेरा किया |
                           शेष अफ्रीकी भूखंड से उत्तर-पश्चिम की ओर चलते हुए आदिमानव अन्य समूहों में योरोप-एशिया पहुंचता रहा, नियंडरथल्स में विक्सित होता रहा परन्तु उत्तर-पश्चिम की अनिश्चित शीतल जलवायु व मौसम से बार बार विनष्ट होता रहा, बचे-खुचे मानव पूर्व-मध्य एशिया के सुमेरु–कैलाश क्षेत्र में उपस्थित विक्सित मानवों से मिल गए|
                            जनसंख्या बढ़ने पर, ब्रह्मा द्वारा मानव के पृथ्वी पर निवास की आज्ञा से, मानव सर्वत्र चहुँ ओर फ़ैलने लगे | पूर्वोत्तर की ओर चलकर बेयरिंग स्ट्रेट पार करके ये पैलिओ-इंडियन अमेरिका पहुंचे व सर्वत्र फ़ैल गए| पूर्व की ओर चाइना, जापान, पूर्वी द्वीप समूह आस्ट्रेलिया तक| दक्षिण में समस्त भारतीय भूमि पर फैलते हुए ये मानव सरस्वती घाटी ( मानसरोवर से पंजाब तक) में; जहां दक्षिणी भारत की नर्मदा घाटी में पूर्व में रह गए मानव समूह उन्नति करते हुए पहुंचे मानवों (जिन्होंने हरप्पा, सिंध सभ्यता का विकास किया|) से इनकी भेंट हुई और दोनों सभ्यताओं ने मिलकर अति-उन्नत सरस्वती घाटी सभ्यता की नींव रखी|
                           यह वह समय था जब सुर-असुर द्वंद्व हुआ करते थे | शिव जो एक निरपेक्ष देव थे सुर, असुर, मानव व अन्य सभी प्राणियों, वनस्पतियों आदि के लिए समान द्रष्टिभाव रखते थे, सभी की सहायता करते थे | उन्हें पशुपतिनाथ व भोलेनाथ भी कहा जाने लगा |
१.शिव ने ही समुद्र मंथन से निकला कालकूट विष पान करके समस्त सृष्टि को बचाया|
२.शिव ने ही देवताओं को अमृत प्राप्ति पर दोनों ओर बल-संतुलन हेतु असुरों को संजीवनी विद्या प्रदान की |
३. शिव ने ही मानसरोवर से सरस्वती किनारे आये हुए इंद्र-विष्णु पूजक मानवों एवं दक्षिण से हरप्पा आदि में विक्सित स्वयं संभु सेक शिव के समर्थकों मानवों के दोनों समूहों, के मध्य मानव इतिहास का प्रथम समन्वय कराया, जिसके हेतु वे स्वयं दक्षिण छोड़कर कैलाश पर बस गए पहले दक्ष पुत्री सती से प्रेम विवाह पुनः हिमवान की पुत्री उत्तर-भारतीय पार्वती से विवाह किया तथा अनेकों असुरों का भी संहार किया, और महादेव, देवाधिदेव कहलाये |
                             हरप्पा, सिंध सभ्यता का विकास करने वाले भारतीय मानव( गोंडवाना प्रदेश के मूल मानव जो अपने देवता शम्भू-सेक के पूजक थे अपनी संस्कृति विकसित करते हुए उत्तर तक पहुंचे थे | हरप्पा में प्राप्त शिवलिंग, पशुपति की मोहर आदि इसके प्रमाण हैं| अर्थात शिव मूल रूप से भारत के दक्षिण क्षेत्र के देवता थे |
यही दोनों समूह मिलकर एक अति-उन्नत सभ्यता के वाहक हुए जो सरस्वती सभ्यता, या वैदिक सभ्यता कहलायी एवं यही लोग ‘आर्य’ कहलाये अर्थात सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ मानव | जो विकासमान हिमालय की नीची श्रेणियों को पार करके देवालोकों व समस्त विश्व में आया जाया करते थे| जनसंख्या व अन्य विकास की विभिन्न सीढ़ियों के कारण पुनः यही मानव समस्त विश्व में फैले और समस्त यूरेशिया, जम्बू द्वीप या वृहद् भारत कहलाया | आज समस्त विश्व में यही भारतीय मानव एवं उनकी पीढियां निवास करती हैं|
विश्व के प्रत्येक कोने में प्राप्त शिवलिंग एवं शिव मंदिर उनके सर्वेश्वर एवं देवाधिदेव, महादेव होने के प्रमाण हैं|

१. देवाधिदेव -शिव ....२.शिवलिंग -अफ्रीका ...३.शिव चीनी ड्रेगन एवं बोनों के साथ ..४.. पशुपति नाथ ( हरप्पा)...५.शिवलिंग--कम्बोडिया ...

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Drshyam Gupta

बुधवार, 2 मार्च 2016

साहित्यकार दिवस -१ मार्च, २०१६--- डा श्याम गुप्त ...

साहित्यकार दिवस -१ मार्च, २०१६--- डा श्याम गुप्त ...

                                
साहित्यकार दिवस -१ मार्च, २०१६---

------सिटी कान्वेंट स्कूल, राजाजी पुरम, लखनऊ के सभागार में, अखिल भारतीय अगीत परिषद् एवं डा रसाल स्मृति एवं शोध संस्थान द्वारा साहित्यकार दिवस २०१६ के आयोजन किया गया ---
समारोह के अध्यक्षता डा विनोद चन्द्र पांडे विनोद ने के| मुख्य अतिथि आगरा वि विद्यालय के उप-कुलपति प्रख्यात अर्थशास्त्री डा मोहम्मद मुजम्मिल , विशिष्ट अतिथि डा सुलतान शाकिर हाशमी पूर्व सलाहकार केन्द्रीय योजना आयोग एवं प्रोफ. उषा सिन्हा पूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग लखनऊ वि वि थीं|


                सरस्वती वन्दना वन्दना कुमार तरल एवं वाहिद अली वाहिद ने की , संचालन डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने |
                अगीत के संस्थापक साहित्यभूषण, विद्यासागर डा रंगनाथ मिश्र सत्य को उनके जन्म दिवस -१मार्च पर उनके शिष्यों, सद्भावी, प्रशंसकों व अन्य उपस्थित सभी कवियों, विज्ञजनों द्वारा काव्यांजलि, पुष्पांजलि एवं भेंट प्रदान करके उन्हें बधाईयाँ प्रस्तुत कीं गयीं |


                 डा रंगनाथ मिश्र सत्य पर रचित पुस्तक--गुरु महात्म्य का एवं विविध पुस्तकों के लोकार्पण एवं साहित्यकारों को विविध सम्मानों , पुरस्कारों से सम्मानित किया गया | इस अवसर पर साहित्यकारों के दायित्व पर एवं अगीत विधा पर व अन्य विविध अभिभाषण प्रस्तुत किये गये |
मुख्य अतिथि डा मोहम्मद मुजम्मिल ने अपने वक्तव्य में अगीत के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य की चर्चा की |


चित्र-१.डा सत्य के जन्म दिवस पर शिष्यों द्वारा भेंट ....२.सुषमा गुप्ता द्वारा विशिष्ट अतिथि डा उषा सिन्हा का माल्यार्पण....३.डा सुलतान शाकिर हाशमी को साहित्य रत्नाकर सम्मान ...४.डा योगेश को श्री जगन्नाथ प्रसाद स्मृति पुरस्कार प्रदान करते हुए डा श्याम गुप्त व सुषमा गुप्ता ....५. उपस्थित कविगण व अन्य विज्ञ जन ...६.डा रंगनाथ मिश्र सत्य की पुत्र वधु को सम्मानित करती हुईं श्रीमती सुषमा गुप्ता....७..अगीत के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व व प्रसार पर बोलते हुए अध्यख डा मोह. मुजम्मिल .... ८. श्रीमती सुषमा गुप्ता को 'पुष्पा खरे' सम्मान प्रदान करते हुए डा रंगनाथ मिश्र सत्य ...९.कविवर देवेश द्विवेदी का सम्मान ...१०.सम्मानित कविगण...११. डा मोहम्मद मुजम्मिल का आख्यान ..



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मंगलवार, 1 मार्च 2016

श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता स्मृति पुरस्कार -२०१६.... डा श्याम गुप्त....

                                     



           साहित्यकार दिवस -१ मार्च, २०१६--- श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता स्मृति पुरस्कार -२०१६....

           सिटी कान्वेंट स्कूल, राजाजी पुरम, लखनऊ के सभागार में, अखिल भारतीय अगीत परिषद् एवं डा रसाल साहित्यिक व शोध संस्थान द्वारा आयोजित ..साहित्यकार दिवस २०१६ के आयोजन के अवसर पर -डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा ...साहित्य व काव्य में सराहनीय योगदान हेतु प्रदत्त.."श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता स्मृति पुरस्कार -२०१६ ".... कवि, समीक्षक व सम्पादक साहित्यकार डा योगेश गुप्त को प्रदान किया गया |

चित्र में ---डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमागुप्ता डा योगेश को सम्मान प्रदान करते हुए साथ में अगीत संस्था के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य , ..
------मंच पर प्रख्यात अर्थशास्त्री डा मोहम्मद मोजम्मिल उप- चांसलर आगरा विश्व-विद्यालय, डा विनोद चन्द्र पांडे पूर्व आई ऐ एस एवं पूर्व अध्यक्ष उप्रहिन्दी संस्थान, लखनऊ , डा सुलतान शाकिर हाशमी , पूर्व सलाहकार सदस्य , योजना आयोग, भारत सरकार , डा उषा सिन्हा पूर्व प्रोफ. हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ....



Drshyam Gupta's photo.

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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...