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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

"नये साल का अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 
गये साल को है प्रणाम! 
है नये साल का अभिनन्दन।।
लाया हूँ स्वागत करने को
थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।। 
है नये साल का अभिनन्दन।।

गंगा की धारा निर्मल हो,
मन-सुमन हमेशा खिले रहें,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के,
हृदय हमेशा मिले रहें,
पूजा-अजान के साथ-साथ,
होवे भारतमाँ का वन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।

नभ से बरसें सुख के बादल,
धरती की चूनर धानी हो,
गुरुओं का हो सम्मान सदा,
जन मानस ज्ञानी-ध्यानी हो,
भारत की पावन भूमि से,
मिट जाए रुदन और क्रन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।

नारी का अटल सुहाग रहे,
निश्छल-सच्चा अनुराग रहे,
जीवित जंगल और बाग रहें,
सुर सज्जित राग-विराग रहें,
सच्चे अर्थों में तब ही तो,
होगा नूतन का अभिनन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।

नव वर्ष ...डा श्याम गुप्त के कवित्त ....


नव वर्ष---

. देव घनाक्षरी ( ३३ वर्ण , अंत में नगण )
पहली जनवरी को मित्र हाथ मिलाके बोले ,
वेरी वेरी हेप्पी हो ये न्यू ईअर, मित्रवर |
हम बोले शीत की इस बेदर्द ऋतु में मित्र ,
कैसा नववर्ष तन काँपे थर थर थर |
ठिठुरें खेत बाग़ दिखे कोहरे में कुछ नहीं ,
हाथ पैर हुए, छुहारा सम सिकुड़ कर |
सब तो नादान हैं पर आप क्यों हैं भूल रहे,
अंगरेजी लीक पीट रहे नच नच कर ||

. मनहरण कवित्त (१६-१५, ३१ वर्ण , अंत गुरु-गुरु.)-मगण |

अपना तो नव वर्ष चैत्र में होता प्रारम्भ ,
खेत बाग़ वन जब हरियाली छाती है |
सरसों चना गेहूं सुगंध फैले चहुँ ओर ,
हरी पीली साड़ी ओड़े भूमि इठलाती है |
घर घर उमंग में झूमें जन-जन मित्र ,
नव अन्न की फसल कट घर आती है |
वही है हमारा प्यारा भारतीय नववर्ष ,
ऋतु भी सुहानी तन-मन हुलसाती है ||

मनहरण --
सकपकाए मित्र, फिर औचक ही यूं बोले,
भाई आजकल सभी इसी को मनाते हैं |
आप भला छानते क्यों अपनी अलग भंग,
अच्छे खासे क्रम में भी टांग यूं अडाते हैं |
हम बोले आपने जो बोम्बे कराया मुम्बई,
और बंगलूरू, बेंगलोर को बुलाते हैं |
कैसा अपराध किया हिन्दी नववर्ष ने ही ,
आप कभी इसको नज़र में न लाते हैं |


रविवार, 29 दिसंबर 2013

"जिल्लत का दाग़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जब गाँव का मुसाफिरआया नये शहर में।
गुदड़ी में लाल-ओ-गौहर, लाया नये शहर में।

इज्जत का था दुपट्टा, आदर की थी चदरिया,
जिल्लत का दाग़ उसने, पाया नये शहर में।

चलती यहाँ फरेबी, हत्यायें और डकैती,
बस खौफ का ही आलम, छाया नये शहर में।

औरत के हुस्न थी, चारों तरफ नुमायस,
शैतानियत का देखा, साया नये शहर में।

इंसानियत यहाँ तो, देखी जलेबियों सी,
मिष्ठान झूठ का भी, खाया नये शहर में।

इससे हजार दर्जे, बेहतर था गाँव उसका,
फिर रूप याद उसको, आया नये शहर में।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

लाड़ली चली ............... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

मेरी कविताओं के झरोखे से ................

लाड़ली चली !!!

बाबा की दहलीज लांघ चली
वो पिया के गाँव चली
बचपन बीता माँ के आंचल
सुनहरे दिन पिता का आँगन
छूटे संगी सहेली बहना भैया
मिले दुलारी को अब सईंया
मीत चुनरिया ओढ़ चली
बाबा की ...........
माँ की सीख पिता की शिक्षा
दुलार भैया का भाभी की दीक्षा
सखियों का स्नेह लाड़ बहना का
वो रूठना मनाना खेल बचपन का
भूल सब मुंह मोड चली
वो पिया के ...............
परब त्योहार हमको  बुलाना
कभी तुम न मुझको भुलाना
साजन संग मै आऊँगी
खुशियाँ संग ले आऊँगी
वो लाड़ली चली
बाबा की ..................

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

"ग़ज़ल-नाम तुम्हारा, काम हमारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


काम तो हमारे हैं, नाम बस तुम्हारा है
पाँव तो हमारे हैं, रास्ता तुम्हारा है


लिख रहे हैं प्यार की इबारत को
बोल तो हमारे हैं, कण्ठ बस तुम्हारा है


नदिया में लहरों से जूझ रहे हैं
दूर ही किनारा है, आपका सहारा है


अपने दिल में झाँककर देखिए जरा
आइना तुम्हारा है, अक्स बस हमारा है


दिख रहे हैं दोबदन एक  सुमन के
प्राण तो तुम्हारा है, 
"रूप" बस हमारा है

मेरे सपनों का रामराज्य (भाग २ )

मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग १ ) से आगे

     
शाष्टांग प्रणाम किया मैं 
जगस्रष्टा ,जग नियंता को 
'वर' पाकर धन्य हो गया मैं 
सोचा -पहले सुधारूँगा भारत को|

पहुँच कर मैं भारत भूमिपर 
पहली इच्छा प्रगट किया
"सौ लोग आ जाये मेरे पास"
वरदान का मैं परीक्षण किया |

देखते ही देखते इकठ्ठा हो गए 
आज्ञाकारी लोगों का एक दल 
नत मस्तक अभिवादन किया मुझे 
बढ़ा मेरा  विश्वास और आत्म बल |

सुनो भाइयों सौ प्यारे मेरे 
करना है हमें एक नेक काम 
निर्मूल करना भ्रष्टाचार को 
दुष्टों से मुक्त करना भारत धाम |

सभी चैनेलों में ,सभी पत्रिकाओं में 
करो यह शुभ समाचार प्रसार 
भ्रष्टाचार मिटाने ,सुशासन करने 
कलि-दुत का हो गया अवतार |

वही होगा प्रधान मंत्री तुम्हारा
उनको दो तुम अपना व्होट 
उनका है 'सुशासन "पार्टी 
"सुशासन " को मिले हरेक व्होट |

व्होटिंग हुआ नारे लगे अनेक 
पर सब चारो खाने हो गए  चित
सबके  सब का जमानत जब्त 
हम जीते, सुशासन की विशाल जीत |

हो गया कमाल ,जीत गए इलेक्सन 
बन गया मैं भारत का प्रधानमंत्री 
हकाल कर बाहर किया भ्रष्टाचारियों ,
बाहुबलियों को जो बन बैठे  थे मंत्री |

बहुमत हमारी थी ,जनता  भी हमारी
करना था गिन गिनकर सारे नेक काम
जन लोक पाल बिल को पास किया
देने भ्रष्टाचारियों को उचित इनाम |

चाहा मैंने -वे नेता ,अधिकारी सब 
हो जाये हाज़िर मेरे आम दरवार में 
जिसने भी लुटा सरकारी खज़ाना 
सरकारी ठेका या और कोई बहाने में |

देखा सभी दल के बड़े नेता ,उसके बाप को 
बाप के बाप और उसके  परदादा को
कुछ तो आये थे पेरोल पर स्वर्ग-नरक से
मेरे ऐतिहासिक फैसला सुनने को |

सबने लुटा भारत  के खजाने को
किया भारत देश को कमजोर 
मेरी चाहत के आगे अब नहीं चलेगा 
किसी भ्रष्टाचारी ,बाहुबलियों का जोर |

किया एलान ," पूर्व मंत्री,मंत्री ,सब अधिकारी 
यदि बचना चाहते हो ,तो इस पर ध्यान  दो
साठ साल में जो भी लुटा खजाने से तुमने 
इमानदारी से खजाने में उसे लौटा दो |

कर देगी जनता माफ़ तुम्हे 
बच जाओगे कैद के बंधन से 
अन्यथा नहीं बच पाओगे
साठ साल के कारवास से 

हमारी इच्छा  ईश्वर इच्छा जानो 
इमानदारी से करो इसका सम्मान 
मुक्ति पाओगे हर कष्ट से इस जग में 
बचा रहेगा तुम्हारा और परिवार का मान |

...............क्रमशः भाग ३ ..


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल...ये अच्छी बात नहीं ......

   ग़ज़ल...ये अच्छी बात नहीं ..

गैर के भूल की सज़ा तुझको मिले तो कोई  बात नहीं |
भूल हो तेरी सज़ा और को हो ये  अच्छी बात नहीं |

बात की  बात है  कि  वो है या  नहीं है वह ,
खुशी में भूल जाएँ खुदा को ये अच्छी बात नहीं |

मुल्क पे कुर्बान होंगे ही कलेजे वाले कोई बात नहीं ,
भूल जाए जो  मुल्क शहीदों को ये अच्छी बात नहीं |

भूल हो गैर की या तेरी हो कोई  बात नहीं ,
सबक भूल से  न ले जो ये अच्छी बात नहीं |

क्या बुरा है,क्या है अच्छा  'श्याम क्या जाने,
याद जो न रखा जाए नेकी को ये अच्छी बात नहीं |

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

तस्वीर के दो रूप ...." ब्रज बांसुरी " की रचनाएँ...डा श्याम गुप्त...

                   मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्य-विधाओं की रचनाओं का संग्रह )

       रचयिता ---        डा श्याम गुप्त                     
                         ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता                                                                                                                                                                           




            ------प्रस्तुत है भाव अरपन छः  ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१.. तस्वीर के दो रूप ...

     तस्वीर -१...
भारत उभरि रहौ है 
जग भरि  में सुपर पावर बनिकें;
खड़ो है रहौ है , 
बड़े बड़ेन के सामुनै, तनिकैं|
भारतवासी विदेशन में हू 
सत्ता सासन के सीस पै हैं ;
का भयौ जो वे-
वहीं के नागरिक है गए हैं ?
हम अपुनी परम्परा औ-
सांस्कृतिक निधि कौं,
करोड़नि डालर में निर्यात करि  रहे हैं |
भारत के कलाकार -
विदेशन में जमि कें आइटम दै रहे हैं |
हाँ फिल्मन की शूटिंग ,
अधिकतर विदेशन में होवै है , और-
भारतीय संस्कृति -
 विदेशी संस्कारनि में घुलिकें ,
विलीन होवै  है |
तौ का भयौ --
एन जी ओ और आतम विश्वास ते भरी भई,
हमारी युवा पीढी के कारन-
हमारौ विदेशी मुद्रा भंडार तौ,
अरबन में बढ़तु है |
कछू पावे के हितू-
कछू खौनौ तो पडतु है ||


   तस्वीर -२
चमकत भये आधे सच ,
विकास के ढोल में ,
पतन की सही बात कहत भये ,
सांचे दस्तावेज,
खोय गए हैं , और-
हम चमक-धमक देखि कें
मोदु मनाय  रहे हैं |

मित्तल नै आर्सेलर खरीद लयी ,
टाटा नै कोरस,
सुनीता नै जीतौ आसमान ,
और अम्बानी नै ,
जग भरि के सबते धनी कौ खिताब |

पर हम का ये बता पावैंगे,
देश कौं समुझाय पावैंगे, कै-
वे करोड़न भारतीय लोग ,
जो आजहू गरीबी रेखा के नीचैं हैं -
कब ऊपर आवैंगे ?

का.. कारनि के ढेर ,
फ्लाई-ओवरनि की भरमार ,
आर्सेलर या कोरस ,
या चढ़तु भयौ  शेयर बज़ार,
उनकौं, दो जून की रोटी ,
दै पावैंगे ||





मेरे सपनों का रामराज्य

सुन सुन कर नेताओं  के
कोमल कर्कश वाणी ,
क्या समझे और क्या न समझे
हमें होती है हैरानी |

सोचते सोचते आँख लग गई
देखा एक सपना अनोखा ,
विष्णुलोक पहुँच गया मैं
लक्ष्मी नायायण का दर्शन किया |

चरणस्पर्श कर माता लक्ष्मी का
और भवसागर के पालक का ,
कहा ,"प्रभु !प्रोमोदित हो तुम गोलोक में
देखो ज़रा हाल भव-संसार का |

स्वर्ग तुल्य भारत भूमि में
हो गया है मानवता का नाश ,
मानव का कलेवर है सबका
आचार विचार से है राक्षस |

भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं
पैर से सर तक शासक वर्ग
महंगाई और शोषण का शिकार
हो रहे हैं निम्न और माध्यम वर्ग |

अत्याचार ,व्यभिचार ,बलात्कार
हो गया है एक मामूली बात ,
गाली गलौज तो जैसे फुल बरसता है
कत्ले आम होती है दिन रात |

भाई, भाई का खून का प्याषा
घर में ,बाहर में फैला है निराशा
एटम बम्ब के त्रास से भयभीत
फट जाय  तो बचने की  नहीं आशा |

सत्य का हनन ,असत्य का विजय
यही है कलियुग  का प्रिय नारा
बाहू बालियों का राज है अब
जनता हो गई  गौ बेचारा |

त्याग दिया क्या धरती पर आना
भूल गए क्या अपना वचन ?
धर्म की  रक्षा के  लिए धरती पर
जनम लेकर करना है दुष्टों का दमन |"

प्रभु बोले ," व्याकुल क्यों  वत्स
सुनो मेरी बात पूर्ण ध्यान से
कलियुग के अन्तिम  चरण में
कोई नहीं बंधे धर्म -कानून से |

दुष्कर्मों का घड़ा जब भर जायेगा
मारेंगे, मरेंगे सब चींटी जैसे
होगा विनाश समूल पापिओं का
द्वापर में मरे यदुकुल जैसे |"

निवेदन किया मैंने प्रभु से
एक बार फिर विनम्र होकर
"मानवता की करो रक्षा
धर्म को बचाओ अवतार लेकर |"

प्रभु बोले ,"आया नहीं अवतार का समय
नहीं जा सकता अभी धरती पर
तुम्हे देता हूँ एक अमोघ शक्ति
जाओ राज करो धरती पर |

तुम जो चाहोगे वही होगा
तुम जो कहोगे ,लोग वही करेंगे
कोई नहीं होगा जग में ऐसा
जो तुम्हारा विरोध कर पायेंगे |

दुष्टों को दण्डित करो और
धर्म राज्य  का स्थापन करो
भ्रष्टाचारी ,बलात्कारी को दण्डित करो
शोषित और नारी को भय मुक्त करो |

तुम्हे देता हूँ वरदान वत्स
होगे तुम सफल इस काम में
सु-शासन और सुविचार का
प्रचार करो जाकर जग में |"



           .................. क्रमश:-भाग २

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित



सोमवार, 16 दिसंबर 2013

मै नारी हूँ .............

मै नारी हूँ ................

मै दुर्गा , अन्नपूर्णा मै ही

मै अपूर्ण  , सम्पूर्णा मै ही ।

मै उमा , पार्वती मै ही ,

मै लक्ष्मी , सरस्वती मै ही ।



मै सृजक , संचालिका मै ही ,

मै प्रकृति , पालिका मै ही ।

मै रक्षिका , संहारिका मै ही ,

मै धारिणी ,   वसुंधरा मै ही ।



मै जननी , जानकी मै ही ,

मै यशोदा , देवकी मै ही ।

मै राधा , रुक्मिणी मै ही ,

मै एकता  , अनेकता मै ही ।



मै माँ हूँ ,  भगिनी हूँ ,

मै वल्लभा हूँ , कामिनी हूँ ।

मै वधू हूँ , रागिनी हूँ ,

मै निर्भया हूँ , दामिनी हूँ ।



मत भूलो मै जननी हूँ

मत भूलो मै भगिनी हूँ

मत भूलो मै दामिनी हूँ ,

मै नारी हूँ , मै नारी हूँ ।




शनिवार, 14 दिसंबर 2013

गधे /कुत्तों का बगावत

चुनाव का माहोल है 
चारो ओर हवा गरम है 
दिल दिमाग में गर्मी है 
आरोप प्रत्यारोप का दौर 
अब चरम सीमा पर है |
गाली गलौज का नया 
शब्दकोष बन रहा है 
पुराने शब्द ,परिभाषाएं 
और अर्थ बदल रहे हैं |
एक पार्टी का नेता 
दुसरे पार्टी के नेतो को 
गधा  क्या कह दिया..,
गधों ने विरोध में 
सड़क जाम कर दिया |
कहा ,"हम मेहनती हैं,
सहनशील हैं ,इमानदार हैं ,
अपना मेहनत का खाते हैं|
इन श्रेष्ट गुणों से रहित 
नेताओं की  तुलना
गधों से करना ......
गधों का अपमान है |
नेता बिना सर्त माफ़ी मागे 
यही हमारा नारा है |"

नेता स्वार्थ सिद्धि के लिए 
हर चुनाव में पार्टी बदलते हैं ,
जिसने उसे राजनीति का पाठ पढ़ाया है
उसी गुरु को धोखा दिया है |
गुरु ने कहा ,"नमक हराम,
विश्वास घातक  कुत्ते .........
नहीं ,तुम तो कुत्ते से भी बदतर हो |"
कुत्तों ने इस बात का विरोध किया है 
स्वार्थी ,धोखेबाज नेताओं को कुत्ता कहना 
स्वाभिमानी ,स्वामीभक्त कुत्तों का अपमान है|
कुत्तों के नेता ने इसे संसद में 
उठाने का वादा किया है |

संसदीय नया शब्दावली बड़ा प्यारा है 
ठेके में दलाली खाने वाला चोर है 
स्कैम को अंजाम देनेवाला चोरों का सरदार है 
ईमान को बेचने वाले बेईमान है 
चीत भी मेरी पट भी मेरी ........
वह दो मुह इन्सान है |
किसी को तगमा दिया जर्सी गाय ,कोई बछड़ा 
कोई पपेट ,कोई रिमोट , तो कोई मुखड़ा 
कोई खाता  है कोयला तो कोई खाता है चारा 
सत्ता के लालच में खाते चप्पल भी बेचारा |
टेबिल,कुर्सी ,माइक तोडना ,चीखना चिल्लाना 
नई संस्कृति का जन्मदाता है संसद हमारा |


   कालीपद"प्रसाद "


© सर्वाधिकार सुरक्षित  

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

अगीत की शिक्षाशाला........कार्यशाला १३...रसों का परिपाक.... डा श्याम गुप्त ....

अगीत की शिक्षाशाला........ अगीत में रस छंद अलंकार योजना


                    कार्यशाला १३.....अगीत में रसों का परिपाक.....




                       
अगीत कविता में लगभग सभी  रसों का परिपाक समुचित मात्रा में हुआ है | सामाजिक एवं  
समतामूलक समाज के उदेश्य प्रधान विधा होने के कारण यद्यपि शांत, करुणा, हास्य ..रसों को अधिक देखा  
जाता है तथापि सभी रसों का उचित मात्रा में  उपयोग हुआ है |
 
                   वीर रस का उदाहरण प्रस्तुत है ....
 
" हम क्षत्री है वन में मृगया,
करना तो खेल हमारा  है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम  सदा  खोजते  रहते  हैं |
चाहे  काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || "                           ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )

      
           रौद्र रस का एक उदाहरण पं. जगत नारायण पांडे के महाकाव्य सौमित्र गुणाकर से दृष्टव्य करें --
 

" क्रोध देखकर भृगु नायक का,
मंद हुई  गति धारा-गगन की;
मौन  सभा मंडप में छाया |
बोले,' कौन दुष्ट है जिसने -
भंग किया पिनाक यह शिव का ;
उत्तर नहीं मिला तो तत्क्षण ,
कर दूंगा निर्वीर्य धारा को || "

            
श्रृंगार रस का एक उदाहरण देखें -----
 

" नैन नैन मिल गए सुन्दरी,
नैना  लिए झुके भला क्यों ;
मिलते क्या बस झुक जाने को |"                        ----त्रिपदा अगीत ( डा श्याम गुप्त )

          
भक्ति रस ---का एक उदाहरण प्रस्तुत है....
 

" मां वाणी !
मुझको ज्ञान दो 
कभी आये मुझमें  स्वार्थ ,
करता  रहूँ सदा परमार्थ ;
पीडाओं को हर दे मां !
कभी  सत्पथ से-
मैं भटकूं 
करता रहूँ तुम्हारा ध्यान | "                         ------डा सत्य

               
हास्य कवि व्यंगकार सुभाष हुडदंगी का एक हास्य-व्यंग्य प्रस्तुत है-----
 

" जब आँखों से आँखों को मिलाया 
तो  हुश्न और प्यार नज़र आया;
मगर जब नखरे पे नखरा उठाया ,
तो मान यूँ गुनुगुनाया --
'
कुए में कूद के मर जाना,
यार तुम शादी मत करना |"

               
वैराग्य, वीभत्स करूण रस के उदाहरण भी रंजनीय हैं-----
 

 मरणोपरांत जीव,
यद्यपि मुक्त होजाता है ,
संसार से , पर--
कैद रहता है वह मन में ,
आत्मीयों के याद रूपी बंधन में ,
और होजाता है अमर | "                       ----डा श्याम गुप्त

"
जार जार लुंगी में,
लिपटाये  आबरू ;
पसीने से तर,
 
भीगा जारहा है-
आदमी |"                                        ----धन सिंह मेहता

"
केवल बचे रह गए कान,
जिव्हा आतातायी ने छीनी ;
माध्यम से-
भग्नावशेष के ,
कहते अपनी क्रूर कहानी | "              ------गिरीश चन्द्र वर्मा 'दोषी '

"
झुरमुट के कोने में,
कमर का दर्द लपेटे
दाने बीनती परछाई;
जमान ढूँढ रहा है 
खुद को किसी ढेर में | "                    ----जगत नारायण पांडे

                              

                 ----- क्रमश कार्यशाला १४ .. अगीत में अलंकार ...


 --------अगीत की शिक्षाशाला.. की अन्य कार्यशालाएं मेरे अन्य ब्लॉग  'अगीतायन'  पर देखें ....







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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...