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शनिवार, 30 नवंबर 2013

तू वही है.....ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त ....



तू वही है.....ग़ज़ल


तू वही है 
तू वही है |

प्रश्न गहरा ,
तू कहीं है |

तू कहीं है
या नहीं है |

कौन कहता ,
तू नहीं है |

है भी तू,
है भी नहीं है |

जहाँ ढूंढो ,
तू वहीं है |

तू ही तू है,
सब कहीं  है |

जो कहीं है ,
तू वहीं है |

वायु जल थल ,
हर कहीं है |
  
' मैं' जहां है,    
'तू' नहीं है |

'तू' जहां है ,
'मैं' नहीं है |

प्रश्न का तो,
हल यही है |

तू ही तू है,
तू वही है |

मैं न मेरा,
सच यही है |

तत्व सारा,
बस यही है |

 मैं वही हूँ ,
तू वही है |

बसा हरसू ,
श्याम ही है |

श्याम ही है,
श्याम ही है ||








गुरुवार, 28 नवंबर 2013

उद्घोष फिर सुनना होगा........................अन्नपूर्णा बाजपेई


नवयुवा तुम्हें जागना होगा
उद्घोष फिर सुनना होगा
नींद न ऐसी सोना तुम
कर्म न ऐसे करना तुम
जिससे मान भंग हो
तिरंगे की शान कम हो
सूर्य सम चमकना होगा
नवयुवा ...............
देश की पुकार सुनो
माँ की गुहार सुनो
समय की ललकार सुनो
बुराई का प्रतिकार करो
कंधों को मजबूत बनाना होगा
उद्घोष फिर सुनना होगा
नवयूवा ..................







बुधवार, 27 नवंबर 2013

डा श्याम गुप्त की गज़ल--जाना होगा ...



        गज़ल--जाना होगा ...

खुशबू छाई जो फिजाओं में तो जाना जानां |
आपसे  हमको  मुलाक़ात  को जाना होगा  |

झूम के बरसा जो सावन तो हमें ऐसा लगा,
अब तो जाना ही हमें जाना ही जाना होगा |

फिर तो ये दिल भी लगा पहलू से अपने जाने,
आपने  ही  तो  सदा  देके पुकारा  होगा |

अप थे सोच में, आयेंगे कि न आयेंगें ,
याद अपनों ने किया कैसे न आना होगा |

बड़ी शिद्दत से किया याद बुलाया ए हुज़ूर ,
कौन अब कैसे कहे, 'यार! न आना होगा' |

रूह में तुम थे समाये तो चले आये श्याम,
हम ही जब होंगे नहीं आना क्या आना होगा ||

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

 हम एडवांस हैं -----निर्मला सिंह गौर की कविता 

दिन हुआ सरपट हिरन रातें नशीली हो गयीं
माँ के चहरे की लकीरें और गहरी हो गयीं

उम्र छोटी पड़ गयी और रास्ते लम्बे हुए
राह में कुछ यात्रियों की म्याद पूरी हो गयी |

गाँव का नटखट कन्हैया हो गया जल्दी बड़ा
और राधा देख कर टीवी हठीली हो गयी                                                                     
हो गये दुर्बल सभी अर्जुन परीक्षा काल में
बैग ढो ढो कर सभी की पेंट ढीली हो गयी |
                                                
पद्मिनी निकलीं महल से चल पड़ी हैं रेम्प पर
और अलाउद्दीन दे रहे हैं अंक परफोर्मेंस पर

दे रहीं सवित्रियाँ अब अर्जियां डाईवोर्स की
सत्यवानो के घरों में कमी इनकम सोर्स की |

पी रहे हैं चरस गांजा गाँव के प्रहलाद अब
हिरणाकश्यप को है टेंसन पुत्र के बर्ताव पर

दे दिया वनवास सीता राम ने माँ बाप को
और श्रवण न कर सके एडजेस्ट अपने आप को

खुल गये वृद्धआश्रम हम बोझ को क्यों कर रखें
ये भी है बिजनेस, सम्हालो आप मेरे बाप को |

मार डाला पीट कर अर्जुन ने द्रोणाचार्य को
कोर्ट ने दी क्लीनचिट इस क्रूरतम संहार को

रो रहा है न्याय ओर कानून भी लाचार है
संस्कारों की दशा, दयनीय सच की हार है

हर तरफ़ रंगत अलग है, आधुनिकता छाई है
आगे बढ़ते हैं कुआ है, पीछे हटते खाई है |

है बड़ा सुंदर हमारा देश हम एडवांस हैं
या विदेशी ट्यून पर हम कर रहे बस डांस हैं | 

सोमवार, 25 नवंबर 2013

हेमन्त ऋतु के दोहे - अरुण कुमार निगम

कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त

मन की चाहत सोचती, बनूँ निराला पन्त |

शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत |
शकुन्तला को  ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |

कोहरा  रोके  रास्ता , ओस  चूमती देह
लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह |

ऊन बेचता हर गली , जलता हुआ अलाव
पवन अगहनी मांगती , औने - पौने भाव |

मौसम का ले लो मजा, शहरी चोला फेंक
चूल्हे के  अंगार में , मूँगफल्लियाँ  सेंक |

मक्के की रोटी गरम , खाओ गुड़ के संग
फिर देखो कैसी जगे, तन मन मस्त तरंग |

गर्म पराठे  कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
 
गाजर का हलुवा कहे, ले लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर, मुझको करके याद |

सीताफल हँसने लगा , खिले बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |

भाँति भाँति के कंद ने, दिखलाया है रूप
इस मौसम भाती नहीं, किसे सुनहरी धूप |

मौसम  उर्जा  बाँटता , है  जीवन पर्यंत
संचित तन मन में करो,सदा रहो बलवंत |


अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल------उन के अश्कों को------डा श्याम गुप्त.....



         ग़ज़ल.....

उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं

आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|

उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |

याद करने से भी दीदार न होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|

प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|

प्रीति है भीनी सी बरसात, क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|

श्याम करते हैं सभी शक मेरे ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||

                                     --- चित्र गूगल साभार....  

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