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बुधवार, 31 जुलाई 2013

कुण्डली छंद...सपने ...डा श्याम गुप्त ....

सपने का संसार  तो है अद्भुत संसार,
कभी ये सपने टूटते, कभी हुए साकार|
कभी हुए साकार, झूठ सच समझ  न आये ,
व्यर्थ शेखचिल्ली से सपने मन नहीं लाये |
टूटें तो दुःख देयं, स्वप्न  कब होते अपने,
पर देखे बिन श्याम' होयं कब पूरे सपने ||
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह  दूरिया आकाश की ..

इस कदर भटकें हैं युबा आज के इस दौर में 
खोजने से मिलती नहीं अब गोलियाँ  सल्फास की 

आज हम महफूज है ,क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गड्डियाँ हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है  आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी  दुनिया, है बिरोधाभास की


मदन मोहन सक्सेना

छंद कुण्डलिया : मिलें गहरे में मोती



हलचल होती देह से, मन से होता ध्यान
लहरों को माया समझ, गहराई को ज्ञान
गहराई  को  ज्ञान , मिलें  गहरे में  मोती
सीधी-सच्ची बात, लहर क्षण-भंगुर होती
गहराई   में   डूब  ,  छोड़  लहरें  हैं चंचल
मन से होता ध्यान, देह से होती हलचल ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर(मध्यप्रदेश)

गाथा हिंदुस्तान



 गाथा हिन्दुस्तान की 
घटती बढती महिमा  सबकी, घटी नहीं बेईमान की |
सतयुग,त्रेता,कलियुग सबमें,-सदा चली बेईमान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

गांधी जी का शिष्य सड़क पर,-अब भी धक्के खाए,
फूट डाल कर राज कर रहा,-नेता   माल  उड़ाए |
ऐसी - तैसी  करता  रहता,- पूरे   हिन्दुस्तान की,
काम नरक जाने के लेकिन,-इच्छा स्वर्ग-विहान की |
देवभूमि भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

एन.जी.ओ.को बना माध्यम,- खाता   'माल मलीदा',
कागज में अनुदान बांटना,- इसका धन्धा  सीधा |
गिद्धों जैसे गटक रहे हैं,- बोटी  हिन्दुस्तान   की,
अपने हित में भेंट चढाते,-भारत के सम्मान की |
देवभूमि भगवान  की,- 
ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

वोट खरीदो, शासक बन कर,-भूलो पांच बरस को,
जनता खोजे, खोज न पाए,-तरसे रोज दरस  को |
डोर हाथ में रक्खो अपने,-चेयर-मैन,  परधान की |
टैक्स  लगा कर  माल  उड़ाना,- परम्परा शैतान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

मंहगा राशन बेच रहा है,-खुले  आम क्यों  लाला,
सुबह-शाम मन्दिर में जाकर,-फेर रहा क्यों माला |
जीवन-दायी दवा ब्लैक में,-पूजा किस प्रतिमान की,
कुत्तों से भी बदतर  हालत,-लगती  है इन्सान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |


माल  मिलावट  वाला बेचे,-कल्लू - मल  हलवाई,
इंस्पैक्टर क्यों पकड़े उसको,-चखता रोज   मलाई |
अधिक मछलियां गन्दी मिलतीं,इस तालाब महान की,
वेतन  बढता  भ्रष्टजनों  का,-यात्रा  बढे  विमान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

सरेआम  बाला  को  घर से,-गुण्डा हर ले  जाए, 
पीड़ितजन पर मित्र पुलिस ही,- गुण्डा-एक्ट लगाए |
कुम्भकरण जैसी हो जाए,-दशा 'पुलिस बलवान' की, 
गुण्डे,  नेता रहें  सुरक्षित,-कीमत कब 'इन्सान' की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

महिला-कालेज की सड़्कों पर,-बिकतीं  गुप्त किताबें,
ठेके लेकर कोचिंग वाले,- इच्छित चयन  करा दें |
निज  शिष्या से इश्क लड़ाए,-हुई  सोच विद्वान की,
प्रोटेक्शन पा जाए कोर्ट से,-'लक' मजनूं  संतान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

रोज  पार्क में जवां दिलों की,-होती  लुक्का-छिप्पी,
सुबह - सवेरे   स्वच्छ्क  बीने,-एफ.एल.,माला-टिक्की |
बीस रूपये में आंख बन्द हो,चीफ-गार्ड मलखान की,
देख  दुर्दशा भी  शरमाए,-दुर्गत  हुई  विधान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

ग्राम- प्रधान हुई है जब से,- घीसू      की  घर वाली,
सरजू - दूबे बैठे घर में,-किस विधि  चले  दलाली |
हर अनुदान स्वंय खाजाता,-चिन्ता किसे  विधान की,
अपना हुक्म चलाता घीसू,-चलती  नहीं प्रधान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

बिन रिश्वत के काम करें क्यों,-बाबू   या    पटवारी,
मोटी-मोटी रिश्वत  खाते,-लगभग सब अधिकारी |
हक  बनती  जाती है  रिश्वत,-भारत देश महान की,
स्वीसबैंक में रखें ब्लैक सब,हर धरती भगवान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

काम - चोर,  रिश्वत-खोरों की,-तनखा बढती  जाती,
रोटी और लंगोटी जन की,-छोटी     होती   जाती |
अन्धी  पीसे कुत्ते खाएं,   हालत  देश  महान  की ,
खिल्ली उड़ा रहे हैं मिलकर,जनता  के कल्याण की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की | 



***

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

(एक अगस्त से हरि गीतिका छन्द का प्रारम्भ हो जायेगा)

मित्रो!
पिछले पन्द्रह दिनों में हमने और आपने कुण्डलिया छन्द के बारे में बहुत कुछ सीखा!
अब एक अगस्त, 2013 से सृजन मंच ऑनलाइन पर हरि गीतिका छन्द के बारे में रचनाएँ आमन्त्रित करता हूँ।
आज इस सन्दर्भ में मैं छन्दों के गुणी आदरणीय Navin C. Chaturvedi  (नवीन सी. चतुर्वेदी) के ब्लॉग 
ठाले बैठे से उनकी एक पोस्ट साभार प्रस्तुत कर रहा हूँ।

हरिगीतिका छन्द विधान

सोलह गिनें मात्रा, रुकें फिर, सांस लेने के लिए|
फिर बाद उस के आप मात्रा - भार बारह लीजिए||

चरणान्त में लघु-गुरु, तुकान्तक, चार पंक्ति विधान है|
हरिगीतिका वह छन्द है जो, महफ़िलों की शान है||

उदाहरण - मात्रा गणना सहित  

सोलह गिनें मात्रा, रुकें फिर, 
२११ १२ २२ १२ ११ = १६ मात्रा, यति  

सांस लेने के लिए|
२१ २२ २ १२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु  

फिर बाद उस के आप मात्रा - 
 ११ २१ ११ २ २१ २२ = १६ मात्रा, यति 

भार बारह लीजिए||
२१ २११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु

चरणान्त में लघु-गुरु, तुकान्तक, 
११२१ २ ११ ११ १२११ = १६ मात्रा, यति 
  
चार पंक्ति विधान है|
 २१ २१ १२१ २ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु

हरिगीतिका वह छन्द है जो, 
११२१२ ११ २१ २ २ = १६ मात्रा, यति 
  
महफ़िलों की शान है||
 १११२ २ २१ २ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु

हरिगीतिका छंद १६+१२=२८ मात्रा वाला छंद होता है| अंत में लघु गुरु अनिवार्य है| इस छंद का अलिखित नियम यह है कि इस की धुन -

ला ला ल ला 
ला ला ल ला ला 
ला ल ला 
ला ला ल ला 

के अनुरूप चलती है| यहाँ धुन वाले ला का अर्थ गुरु अक्षर न समझ कर २ मात्रा भार समझना चाहिए|

ठीक इसी तरह का एक और छंद है - उसे सार या ललित छंद के नाम से जाना जाता है| इस छंद में भी १६+१२=२८ मात्रा होती हैं| अंत में गुरु गुरु आते हैं| और इस सार / ललित छंद की धुन होती है - 

ला ला ला ला 
ला ला ला ला 
ला ला ला ला 
ला ला

यहाँ भी धुन वाले ला का अभिप्राय गुरु वर्ण से न हो कर २ मात्रा भार से है|

हरिगीतिका को कभी कभी कुछ व्यक्ति गीतिका समझने की भूल कर बैठते हैं| जब कि वह एक अलग ही छंद है| गीतिका में १४+१२=१६ मात्रा होती हैं| अंत में लघु गुरु| इस छंद की धुन होती है -

ला ल ला ला 
ला ल ला ला 
ला ल ला ला
ला ल ला 

यहाँ भी धुन वाले ला का अभिप्राय गुरु अक्षर न हो कर २ मात्रा भार है| गीतिका छंद का उदाहरण - "हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये"|

भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ-

माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |
वाणी में मिसरी घुले, भाव-कथ्य सुस्पस्ट |
भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
पाप-कलुष हों नष्ट, सभी मिट जाय भ्रांतियां |

काव्य
करे कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता  |
हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||

बापू तुम वापस आ जाओ



राष्ट्र-पिताजी आप स्वर्ग में,परियों के संग खेल रहे हैं |
इधर आपके , चेले-चांटे ,अरब-खरब में खेल रहे हैं |

बचे-खुचे अनुगामी जितने,जीवन अपना ठेल रहे  हैं |
फटी लंगोटी तन पर लेकर,मंहगाई को  झेल रहे  हैं |

भारत से सम्बन्धित बापू,गणित तुम्हारा सही नहीं था |
कुछ दिन रहता सैन्यतंत्र में,प्रजातंत्र के योग्य नहीं था |

नियमों में पलने की आदत,खाद बना कर डाली जाती |
फिर नेता की फसल उगाकर,प्रजातंत्र में डाली  जाती |

आज सभी को है आजादी,लुटती-फिरती जनता सारी |
मक्खन खाते नेता अफसर,छाछ न पाती किस्मत मारी |

मंहगाई से त्रस्त सभी  हैं,गायब माल नहीं दिखता है |
दाल मिल रही सौ की केजी,आटा तीस रूपये मिलता है |

आलू तीस रूपये तक चढकर,अब नीचे कुछ आ पाया है |
प्याज बिक रही इतनी मंहगी,तड़का तक ना लग पाया है |

बड़ी कम्पनी माल घटा कर,कीमत पूरी ले  लेती  है |
अधिकारी  धृतराष्ट्र  बनाए-,कुछ जूठन उनको देती है |

कर्ज उठाते, नोट   छापते,धन जब जेबों में आता  है |
पैसा ज्यादा,माल अगर कम,मूल्य एकदम बढ जाता  है |

अर्थ-शास्त्री पी.एम. अपने,इतना फण्डा समझ न पाते |
भारत ला कर,एफ.डी.आई,वे विकास का चित्र दिखाते |

धीरे-धीरे देश सिमट  कर-,उन के बन्धन में आया है |
भारत मां को बंधक रखकर,नेता  शर्म   नहीं खाया है |

बेच रहे हैं देश कुतर  कर,अपनी सत्ता  कायम  रखने |
धर्म जाति में नफरत  डालें,मन में दूरी  कायम  करने |

बापू इस स्वतंत्र दिवस पर,तुम लाठी ले वापस आओ |
ठोक पीट कर नेता अफसर,प्रजातंत्र  पटरी पर  लाओ | 
***

सोमवार, 29 जुलाई 2013

कुण्डली छंद ....श्याम लीला-- गोवर्धन धारण.... डा श्याम गुप्त....

 

..कुण्डली  छंद ....श्याम लीला-- गोवर्धन धारण....

                                           ...


जल अति भारी बरसता वृन्दावन के धाम,
हर  वर्षा-ऋतु  डूबते , वृन्दावन के ग्राम |
वृन्दावन के ग्राम, सभी दुःख सहते भारी ,
श्याम कहा समझाय, सुनें सब ही नर नारी 
ऊंचे गिरितल बसें , छोड़ नीचा धरती तल,
फिर न भरेगा, ग्राम गृहों में वर्षा का जल ||

पूजा नित प्रति इंद्र की, क्यों करते सब लोग ,
गोवर्धन  पूजें  नहीं,  जो  पूजा  के  योग  |
जो पूजा के योग,  सोचते क्यों नहीं सभी,
देता पशु,धन-धान्य,फूल-फल सुखद वास भी |
हितकारी है श्याम , न गोवर्धन सम दूजा,
करें नित्य वृज-वृन्द  सभी गोवर्धन पूजा  ||

सुरपति जब करने लगा, महावृष्टि ब्रजधाम ,
गोवर्धन गिरि बसाए, ब्रजवासी घनश्याम  |
वृजवासी घनश्याम,  गोप गोपी साखि राधा,
रखते सबका ख्याल, न आयी कुछ भी बाधा |
उठा लिया गिरि कान्ह, कहैं वृज बाल-बृंद सब ,
चली न कोइ चाल , श्याम, यूँ हारा सुरपति  || 


ख़लीफ़ा घर से बाहर जो, हमें बन कर दिखाता है |
वही  चूहा  बना घर में, चरण  'उनके'  दबाता है |

सुबह की चाय से लेकर, बनाता लंच घर भर का,
धुलाई कर के कपड़ों की, वही छत पर सुखाता है |

वही स्कूल जाने  को करे  तैयार,  बच्चों   को,
वो जब अंगड़ाई लेती हैं,तो उनकी चाय लाता है |

चला जाता है शापिंग साथ में, चपरासियों सा ये,
यही पेमेन्ट करता है, यही सब लाद  लाता  है |

वो नज़रें कर ज़रा टेढी,   इसे  आवाज  देती  हैं,
तो अन्दरतक ख़लीफ़ा ये,सिहर कर कांप जाता है |

सुनाऊं क्या ख़लीफ़ा की, ये हैं सब 'राज' की बातें ,
बना रहता गधा घर में,अकड़ बाहर दिखाता  है | 

रविवार, 28 जुलाई 2013

"कुण्डलियाँ-चीयर्स बालाएँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

चीयर्स बालाएँ 

(१)
सुन्दरियाँ इठला रहीं, रन वर्षा के साथ।
अंग प्रदर्शन कर रहीं, हिला-हिला कर हाथ।।
हिला-हिला कर हाथ, खूब मटकाती कन्धे।
खुलेआम मैदान, इशारे करतीं गन्दे।।
कह मयंक कविराय, हुई नंगी बन्दरियाँ।
लाज-हया को छोड़, नाचती हैं सुन्दरियाँ।। 

(२)
आई कैसी सभ्यता, फैला कैसा रोग।
रँगे विदेशी रंग में, भारत के अब लोग।।
 भारत के अब लोग, चले हैं राह वनैली,
उपवन में उग रही, आज है घास विषैली।।
कह मयंक कविराय, वतन में आँधी छाई।
घटे बदन के वस्त्र, सभ्यता कैसी आई।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कुण्डलियाँ ---श्याम लीला ---- डा श्याम गुप्त....

               गोधन चोरी --

 माखन की चोरी करें नित प्रति नन्द किशोर,
कुछ खाते कुछ फैंकते , मटकी देते फोड़   |
मटकी देते फोड़ ,सखा सँग  घर घर जाते ,
चुपके मटकी तोड़ ,सभी गोधन फैलाते |
देते यह सन्देश ,श्याम' समझें ब्रजवासी,
स्वयं बनें बलवान , दीन हों मथुरा वासी ||

गोकुल वासी क्यों गए अर्थ शास्त्र में भूल,
माखन दुग्ध नगर चला,गाँव में उड़ती धूल|
गाँव में उड़ती धूल, गोप- बछड़े सब भूखे,
नगर होयं संपन्न, खायं हम रूखे-सूखे |
गगरी देंगें तोड़ , श्याम' सुनलें ब्रजवासी,
यदि मथुरा लेजायें गोधन, गोकुल वासी ||



---- चित्र---गूगल साभार ..





सावन[ कुण्डलिया ]

सावन आया झूम के,देखो लाया तीज
रंगबिरंगी ओढ़नी, पहन रही है रीझ
पहन रही है रीझ, हार कंगन झाँझरिया
जुत्ती तिल्लेदार, आज लाये साँवरिया
उड़ती जाय पतंग, लगे अम्बर मनभावन
झूलें मिलकर पींग, झूम के आया सावन
 .................

बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |
धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम|| 
भर भर घट के जाम , हरियाली है छा गई |
महक बिखेरें फूल , सावन रुत है आ गई  ||
लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |
खुश हुए हैं बालक, मेघा ले आय बरखा ||
.................

कुण्डलिया छंद : अरुण कुमार निगम



निर्मम  दुनियाँ  से  सदा , चाहा  था   वैराग्य
पत्थर सहराने लगा ,  हँसकर अपना भाग्य
हँस कर  अपना  भाग्य , समुंदर की गहराई
नीरव बिल्कुल शांत, अहा कितनी सुखदाई
दिन  में  है  आराम   ,रात  हर  इक  है पूनम
सागर कितना शांत , और दुनियाँ है निर्मम ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

"कुण्डलियाँ-मूछ वन्दना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 
आभूषण हैं वदन कारक्खो मूछ सँवार,
बिना मूछ के मर्द कामुखड़ा है बेकार।
मुखड़ा है बेकारशिखण्डी जैसा लगता,
मूछों से नर के कानन में पौरुष जगता,
कह मंयक’ मूछों वाले ही थे खरदूषण ,
सत्य वचन है मूछमर्द का है आभूषण।
(२)
पा कर मूछें धन्य हैंवन के राजा शेर,
खग-मृग सारे काँपतेतीतर और बटेर।
तीतर और बटेरकेसरि नही कहलाते,
भगतसिंह-आजाद मान जन-जन में पाते।
कह मयंक’ मूछों से रौब जमाओ सब पर,
रावण धन्य हुआ जग मेंमूछों को पा कर।
(३)
मूछें बिकती देख करहर्षित हुआ मयंक’,
अपना मूछों के बिनाचेहरा लगता रंक।
चेहरा लगता रंकखरीदी तुरन्त हाट से,
ऐंठ-मैठ कर चलारौब से और ठाठ से।
कह मंयक’ आगे कामेरा हाल न पूछें,
हुई लड़ाई मार-पीट में उखड़ी मूछें।

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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

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