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गुरुवार, 8 अगस्त 2013

भाइयो मिलकर मनाओ ईद..........प्रतुल वशिष्ठ





भाइयो मिलकर मनाओ ईद
दिल में न रह जाए कसक और फिकर
गर गरीबी में दबा हो कोई बन्दा
बाँट फितरा दिखा उसको भी जिगर
पर न जिन्दा जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे कर परिंदे बेफिकर
दर और दरिया मान सबका
मौहब्बत का सब बराबर सब बराबर

ज़र और जोरू है सलामत
ख़ुद की व औरों की, रख पाक अपनी भी नज़र
सरहद हिंद पर मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को नेस्तनाबूद और सिफर
----- तभी होगी ईद-उल-फितर। 
-प्रतुल वशिष्ठ 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट रचना दिनांक 09.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  2. ईद पर अच्छी प्रस्तुति । सही विचार रखना सही काम करना ही सच्चा त्यौहार है ।

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